Sunday, July 27, 2014

यूँ टूट जाते हैं चंद ख्वाब....


वर्तमान दौर अनास्था का दौर है औऱ शिक्षित य़ुवा मन पर आयोगों की नीतियाँ और कारगुजारिया कहर बरपा रही है।  अभी दिल्ली विश्वविद्यालय औऱ विश्वविद्यालय  अनुदान आय़ोग की असहमति के चलते विद्यार्थी उनकी नीतियों के  शिकार हुए ही थे कि अब राजस्थान लोक सेवा आयोग सवालों के घेरे में है। अपनी महत्वपूर्ण और निष्पक्ष क्रियाकलापों के परिदृश्य में, लोक सेवा आयोगों ने भारतीय संविधान में सर्वोच्च स्थान पाया है। लोक सेवा आयोगों का उनके द्वारा सम्पादित किए जाने वाले महत्वपूर्ण कार्यों के ही कारण ऐसी संस्थाओं के लिए निष्पक्षता एक अनिवार्य तत्व बन जाता है और इसी विशेषता  के द्वारा वह जनता के मध्य विश्वसनीय बन पाती है परन्तु  इन आयोगों की हालिया स्थिति चिन्ताजनक है। मध्यप्रदेश के पश्चात् अब राजस्थान लोक सेवा आयोग  की मौजुदा स्थिति  अपने निराशाजनक प्रदर्शन के चरम पर है। आरएएस प्री औऱ हाल ही में सम्पादित करवाई जा रही स्कूल व्याख्याता परीक्षा में पायी जा रही गड़बड़ियों के चलते इसकी विश्वसनीयता में गहरी सेंध लगी है।  इसी सप्ताह आयोग को पेपर लीक  प्रकरण  के चलते आरएएस प्री 2013 परीक्षा रद्द करनी पड़ी। एक सप्ताह में दो परीक्षा निरस्त होने से आयोग की कार्यप्रणाली कठघरे में है। इसी के साथ प्रश्नों के दोहराव और प्रश्न पत्र बिकने जैसे  समाचार भी निरन्तर प्रकाशित हो रहे हैं। इसी के चलते अन्य परीक्षाओँ की विश्वसनीयता पर भी  संशय के  बादल  मंडरा रहे हैं। एक के बाद एक हो रही अनियमितताओँ से यह संस्था युवा मन के सब्र का इम्तिहान सी लेती नजर आ रही है। आयोग की निष्पक्षता पर अब सवालिया निशान लग चुके हैं औऱ इन गड़बड़ियों का सबसे बड़ा कारण इसकी माडरेशन प्रणाली को बताया जा रहा है। पूर्व में आयोग किसी भी परीक्षा हेतु विशेषज्ञों से तीन अलग अलग पर्चें तैयार करवाता था और परीक्षा सम्पन्न होने तक स्वंय आयोग को यह नहीं पता होता था कि कौनसा प्रश्न पत्र अमुक परीक्षा में आने जा रहा है। कुछ गड़बड़ियों के चलते आयोग को अपनी इस पद्धति में बदलाव करना पड़ा और नतीजा हम सबके सामने है। वर्तमान में कई विशेषज्ञ एक परीक्षा के पर्चे को तैयार करते हैं। चैयरमेन इसे छपने से पूर्व कई विशेषज्ञों से इसकी जाँच करवाते है।  परिणाम यह होता है कि इस समूची प्रक्रिया में  परीक्षक से लेकर बोर्ड मेम्बर, आयोग सदस्यों तथा छपाई तक वह पर्चा कई लोगों की जानकारी में आ जाता है और उसकी गोपनीयता संदिग्ध हो जाती है। कारण जो भी रहे हो पर दोष सिर्फ और सिर्फ आयोग का ही है क्योंकि जब भविष्य निर्माण  जितनी अहम जिम्मेदारी किसी के कांधो पर हो तब आयोग केवल प्रिंटिंग प्रेस पर जिम्मेदारी डाल कर अपना दामन नहीं बचा सकता।
राजस्थान लोक सेवा आयोग का  50 वर्षों का स्वर्णिम इतिहास रहा है जिसका दावा वह खुद करता है। यही नही आयोग गत वर्षों में अनेक क्षेत्रों में  राष्ट्रीय स्तर पर एक्सीलेंसी अवार्ड भी प्राप्त कर चुका है फिर आमजन उससे ऐसी गलतियों की उम्मीद कैसे कर सकता है। अभ्यर्थी सालों बेहतर भविष्य के निर्माण में किसी परीक्षा की तैयारी करते हैं और वह पूरे विश्वास और निष्ठा से  परीक्षा देने आयोग की शरण में आता है पर उनके सपनों पर कुठाराघात होता है  और वे कांच की भांति टूटकर बिखर पड़ते हैं जब कोई स्वार्थी पुरूष अट्टहास करता हुआ कहता है कि मैं  बीते दस सालों में ना जाने कितने लोगों को आरएएस आईपीएस  अधिकारी बना चुका हूँ । यह कथन उन सभी सपनों को एक साथ तोड़ता है जो पूरी पूरी रात जागकर एकाग्रचित्त मन से अपने औऱ अपने परिवार के  लिए एक चमकीले आकाश को संजोते है, जो कई बेड़ीयों को तोड़ने को  खुद को सबल बनाने को बुने गए हो। आरपीएससी सच ही अब एक स्कैंङल कमीशन बन चुका है जहां योग्य उम्मीदवारों की योग्यता और उनके धैर्य की बलि चढाई जाती है। आय़ोग की  ऐसी लापरवाही का खामियाजा निर्दोष औऱ बेरोजगारों को भुगतना पड़ता है। आज परीक्षाओँ  के पर्चे लीक हो रहे हैं, बाजारों में बिक रहे हैं, कहीं कोई परीक्षा केन्द्र ही बिका हुआ है तो कहीं उक्त धारणा बलवती है कि फलां केन्द्र से परीक्षा देने पर चयन पक्का है। आज परीक्षा होने के तुरन्त बाद मामले न्यायालय की शरण में चले जाते है। आयोग में इतनी अधिक अनियमितताएँ हैं कि याचिकाएँ दायर होना अब आम बात हो गई है। य़े मामले लम्बी अवधि तक कोर्ट में अनिर्णित पड़े रहते है। जिसका खामियाजा सफल अभ्यर्थियों को भी भुगतना पड़ता है।अब इन सब अनियमितताओं को दूर कर आय़ोग के ढाँचे में आमूलचूल बदलाव की आवश्यकता है। आयोगों में बैठे उन तमाम दलालों को सबक सिखाकर एक मिसाल कायम करने की दरकार है  ताकि इस सड़े गले तंत्र को पुनर्जीवित किया जा सके।   भविष्य में बेरोजगार सपनों के साथ खिलवाड़ ना हो इसलिए आवश्यक है कि  सरकार ऐसे ठोस कदम उठाए जिससे इस संस्था पर लोगों का विश्वास फिर से कायम हो सके।  आयोग  की नीतियों में बदलाव कर इसकी निष्पक्षता को पुनः कायम करने की आवश्यकता है ताकि युवा मन फिर से आशान्वित हो अपने सपनों को नये आयाम प्रदान कर सके औऱ बेरोजगारों की बढती फौज पर अंकुश लग सके।