Saturday, January 31, 2015

सुषमा की चीन यात्रा के मायने

                    सुषमा की चीन यात्रा के मायने
विश्व शक्ति के भारत आगमन के एक हफ्ते के भीतर भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की चीन यात्रा के अनेक विशेष कारण नजर आते हैं। कई लोग इस मुगालते में हैं कि यह यात्रा विश्व शक्ति के भारत आगमन की प्रतिक्रिया है। सुषमा की यह देख यात्रा बराक ओबामा के भारत आगमन का नतीज़ा है यह कहना निश्चित तौर पर बेमानी होगा क्योंकि उनकी यह यात्रा बहुउद्देशीय है और वे इस दौरान न केवल चीन से अनेक सामरिक और व्यापारिक मुद्दो से बातचीत करेंगी वरन् साथ साथ रूस-भारत-चीन त्रिपक्षीय बैठक में  भी हिस्सा लेंगी जिसका निर्धारण अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत पहले हो जाता है। यह दौरा प्रधानमंत्री मोदी के आगामी मई दौरे के लिए एक ज़मीन भी तैयार करेगा। हालांकि इस यात्रा पर ओबामा की भारत यात्रा की परछाई ज़रूर रहेगी। चीन और भारत के संबंध समय समय पर बदलते रहे हैं परन्तु गत वर्ष राष्ट्रपति शी के दौरे ने द्विपक्षीय संबंधों को एक नई गति भी  प्रदान की है । चीन विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। वर्तमान में चीन की अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुज़र रही है। चीन की अर्थव्यवस्था की विकास दर 2013 में 7.7 प्रतिशत रही जो बीते 14 वर्षों में न्यूनतम है और 2014 में यह 7.4 फीसदी ही रह गई। इससे इस दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की विकास के मार्ग में आ रही चुनौतियां जगजाहिर है। शी की यात्रा ने दोनों देशों की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ता के नए आयाम प्रदान किए हैं। वर्तमान में चीन अपनी अर्थव्यवस्था को तवज्जो दे रहा हा ऐसे में सुषमा की यह यात्रा इन्हीं व्यापारिक समझौतों और कूटनीतिक मुद्दों पर  खुलकर चर्चा करने का साझा प्रयास साबित होगी । चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग के अनुसार हम इस दौरे को लेकर उत्साहित हैं। दो सबसे बड़े विकासशील देश एवं अर्थव्यवस्थाओं के द्विपक्षीय संबंध ठोस और स्थिर तरीके से आगे बढ़ रहे हैं। हुआ के ही अनुसार हमारा सहयोग कुछ आगे बढ़ा है साथ ही हम कई क्षेत्रों में परस्पर राजनीतिक विश्वास और व्यावहारिक सहयोग को बढ़ा रहे हैं। हमारे बीच ठोस समन्वय है और क्षेत्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर सहयोग है। बहरहाल सीमा-विवाद और हिंद महासागर में आपसी प्रतिद्वंद्विता पर दोनों देशों की अब भी अपनी अलग अलग राय है ऐसे में यह दौरा व्यावहारिक से अधिक सांकेतिक ही अधिक नज़र आता है।

अगर इस यात्रा के कार्यक्रम पर एक नज़र डालें तो सुषमा की इस चीन यात्रा के दौरान दोनों देशों के विदेश मंत्री अनेक  द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करेंगे। विदेश मंत्रालय से बुधवार को जारी एक बयान के अनुसार, बीजिंग प्रवास के दौरान सुषमा दूसरे भारत-चीन उच्च स्तरीय मीडिया फोरम का शुभारंभ करेंगी और विजिट इंडिया ईयर के उद्घाटन में हिस्सा लेंगी। इसके अलावा सुषमा 13 वें रूस-भारत-चीन (आरआईसी) विदेश मंत्रियों की त्रिपक्षीय बैठक में भी हिस्सा लेंगी और रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से अलग से मुलाकात भी करेंगी। आरआईसी त्रिपक्षीय सहयोग में उद्योग, व्यापार, कृषि, आपातकालीन सेवाएं और स्वास्थ्य सेवाएं  जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे शामिल हैं। आरआईसी के सदस्य राष्ट्र वर्तमान  समय में ब्रिक्स और जी-20 जैसे महत्वपूर्ण समूहों के सदस्य भी  हैं। इसी के साथ साथ बीजिंग प्रवास के दौरान सुषमा दूसरे भारत-चीन उच्च स्तरीय मीडिया फोरम का शुभारंभ करेंगी और विजिट इंडिया ईयर के उद्घाटन में हिस्सा  भी लेंगीइस प्रकार पूरी यात्रा के राजनीतिक व व्यावसायिक महत्व हैं ऐसे में उन सामरिक महत्व के मुद्दों पर बातचीत होना संभव प्रतीत नहीं होता  जिस पर चीन हमेशा से बचने का प्रयास करता रहा है। हालांकि ये मुद्दे बेहद ज़रूरी है क्योंकि चीन का सीमा को लेकर अतिक्रमणात्मक रवैया और हिंद महासागर में आए दिन दूर दूर तक पनडूब्बियां भेजकर अपना दबदबा साबित करना अबअक्षम्य है । बार बार इसे महज़ एक  सामान्य गलती मानकर नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। इन्हीं कारणों के चलते  तीन दिवस की इस यात्रा में इन मुद्दों पर बात छिड़ने की संभावना को लेकर उत्सुकता बराबर बनी रहेगी। आम जनता में चीन की छवि नकारात्मक है । चीन ने भी बार बार अपने वादों से मुकरकर आम जनता की इस धारणा को और बल ही दिया है ऐसे में यह यात्रा भारत चीन के नए संबंधों में एक महत्वपूर्ण प्रयास साबित हो सकती है। अभी चीन सशंकित है , ओबामा की भारत यात्रा को  वह कभी सतही तो कभी उसे घेरने की तैय़ारी बता रहा है । इस प्रकार सुषमा की यह यात्रा चीन की  इन आशंकाओं और उसकी उन टिप्पणियों की पृष्ठभूमि में हो रही है जिसमें उसने अमेरिका की भारत यात्रा को एक बेमेल मेलमिलाप बताया है। गौरतलब है कि ओबामा की यात्रा के बाद चीन काफी असहज महसूस कर रहा है। ओबामा की इस यात्रा के दौरान भारत और अमेरिका ने एशिया प्रशांत क्षेत्र के लिए संयुक्त रणनीतिक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे जिस पर चीन ने कड़ी आपत्ति जताई थी और उसके सरकारी मीडिया ने इसे 'दिखावा' बताया था। अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातचीत के बाद अमेरिका और भारत के संयुक्त वक्तव्य जारी किए जाने से भी चीन नाखुश था। चीन ने बार बार अपनी असहजता दर्ज कराते हुए यह तक कहा कि एशिया की रणनीति में बाहरी किसी भी दखल को स्वीकार नहीं किया जाएगा। इन सबके बावजूद चीन भारत की तटस्थता एवं अप्रभावात्मक विदेशी नीति से आश्वस्त भी है ,वह भारत के संतुलित रवैये पर विश्वास रखता है और साथ ही आंतकवाद के मुद्दे पर अमेरिका के भारत के प्रति सहयोग को लेकर भी परिचित है। बहरहाल तमाम आशंकाओं के होते हुए भी दोनों ही देश विकास के अनेकानेक मुद्दों पर एकजुट हैं। इस प्रकार दोनों ही देश इस यात्रा के दौरान अपने संबंधों में गर्माहट पैदा करने का साझा प्रयास करेंगें। इसी के साथ वीसा मामलों, जलवायु वार्ता ,प्रदूषण की रोकथाम में विकासशील देशों की भूमिका, शिक्षा में बेहतरी के विकल्प  तलाशने और भाषायी आदान प्रदान द्वारा बेहतर मानवीय संसाधन तैयार करने का भी दोनों देशों का साझा प्रयास रहेगा। दोनों ही देश एक दूसरे के लिए बड़े बाज़ार हैं ,अर्थव्यवस्था की बेहतरी के विकल्प हैं इसी लिए यह दौरा अपनी अपनी महत्वाकांक्षाओं को परवाज़ देने का वक्त भी होगा। हालांकि तमाम सीमायीं विवाद और दूरियां अब भी अपनी अपनी जगह ही रहेंगीं। 

Wednesday, January 14, 2015

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                      उल्लास के संक्रमण का पर्व मकर संक्रांति
जनवरी का महीना अर्थात् नए संकल्पों का महीना। वह महीना जहां प्रकृति का हर उपादान मानों एक दूसरे को धन्यवाद दे रहा हो और प्राणी मात्र को चैतन्य करने का प्रयास कर रहा हो। वस्तुतः यह माह सृष्टि के सृजन पथ पर चलने का प्रस्थान बिंदु है। प्रकृति सदा एक लय में गुंथी रहती है औऱ जब  बदलाव  की करवट लेती है तो कभी प्रिय तो कभी अप्रिय आहट का आभास होता है। परन्तु प्रकृति सही गलत का बोध भुलाकर अपनी शाश्वत परिक्रमा में निरन्तर व्यस्त रहती है। इसी परिवर्तन की प्रक्रिया का प्रथम सोपान है मकर संक्रांति का पर्व जो वर्ष के पहले पखवाड़े में आता है और विविधता से भरे इस देश को एकता के सूत्र में बांधता है । सम्पूर्ण सृष्टि आसमान और धरती को नापती हुई ,परिवर्तन की थाप पर ऋतुओं सी थिरकती हुई, सुर्य और चंद्रमा के रूप में अपनी शाश्वत यात्रा तय करती रहती है। सम्पूर्ण सृष्टि को ऊर्जिस्वत करने वाला और रोज पूर्व की कोख से जन्म लेने वाला  सूर्य जब अपनी कक्षा बदलकर परिवर्तन का संदेश देता है तो सम्पूर्ण प्रकृति हुमक उठती है। सूर्य इस दिन दक्षिणायन से उत्तरायण होता हुआ धनु से मकर राशि में प्रवेश करता है। एक प्रकार से इस राशि में सुर्य की कक्षा में परिवर्तन होता है , संक्रमण होता है यही कारण है कि इसे संक्रान्ति काल की संज्ञा दी गई है। नवम्बर ,दिसम्बर माह के सर्द दिन जब हवाओं में बर्फ घुली होती है और सूरज बादलों की ओट में रज़ाई ओढ़े बैठा रहता है इस दिन अपनी खुमारी उतार अपने पुराने शबाब पर लौट आता है। संक्रांति काल में सूर्य अपनी ऊर्जा में कुछ बढ़ोतरी करता है यही कारण है कि सर्दी का असर  कुछ कम होने लगता है और सर्द दिन जो अपने आप को समयचक्र के अनुसार कुछ पहले समेटकर रात के आगोश में चले जाते थे  इस दिन से अपना शामियाना कुछ और देर धरती पर लगाते हैं।
सुर्य के उत्तर होने के इस पर्व को समूचा देश समान उल्लास से मनाता है। हरियाणा और पंजाब में इस पर्व को लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है, तो तमिलनाड़ू में इसे पोंगल के रूप में । कर्नाटक , केरल तथा आँध्रप्रदेश में यह उत्तरायणी या संक्रांति के नाम से तो बिहार में इसे खिचड़ी और उत्तरप्रदेश, असम  में इसे दानपर्व और बिहू के नाम से जाना जाता है। भारत के हर त्योहार के पीछे ऐतिहासिक घटनाएं और मान्यताएँ हैं और ऐसा इस पर्व के साथ भी है। वेद और पुराणों में भी इस दिन के माहात्म्य का उल्लेख है अन्य धार्मिक कथाओं में भी इस दिन के संबंध में अनेक कथाएं हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र से मिलने उसके घर जाते हैं। एक अन्य कथा के अनुसार महाभारत के तटस्थ और समर्पित नायक भीष्म पितामह ने इसी दिन को ही स्वेच्छा से देह त्याग के लिए चुना। इसके पीछे यह मान्यता है कि उत्तरायण में देह त्यागने वाली आत्मा देवलोक में गमन करती है एवं उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.। इसके साथ ही एक मान्यता यह भी जुड़ी है कि इसी दिन गंगा मैया भागीरथ का अनुसरण करती हुई कपिल मुनि के आश्रम से गुजर कर सागर से मिलती है.
बहरहाल इतिहास जो भी रहा हो इस तिथि का अपना खगोलीय और वैज्ञानिक महत्व भी है।  जब सूर्य पूर्व से उत्तर की ओर गमन करता है तो पृथ्वी पर पहुँचने वाली पराबैंगनी किरणों का प्रभाव कुछ कम हो जाता है परिणामतः यह ताप जीवन ऊर्जा की तरह काम करता है। मकर संक्रांति वस्तुतः एक खगोलीय घटना है जिससे सृष्टि के शाश्वत तत्वों की दिशा तय होती  और इस प्रकार सृष्टि के पुनर्गठन की इस प्रक्रिया में सकारात्मकता का उत्सर्ग होता है। जड़ और चेतन सभी पदार्थ एक लय में आकर संगठित होने का संदेश देते नज़र आते हैं। यह त्यौहार  ऋतुओँ का संधि काल है अतः स्वास्थ्य लाभ करने का भी यह श्रेष्ठ अवसर होता है। वसंत के आगमन की आहट लिए और शीतल मंद बयार के झोंके लिए यह पर्व  हर मन को चैतन्य करने का प्रयास करता है। तिल और गुड़ से बने पकवान शरीर में एक नयी स्फूर्ति उत्पन्न करते हैं। इस पर्व की पूर्व संध्या पर भंगड़ा और गिद्दा की धूम होती है जहां पंजाबी लोग अग्नि के इर्द-गिर्द नृत्य कर उल्लास जताते हैं.। उनका यह उल्लास नयी ऋतु के स्वागत के लिए होता है।  जयपुर और अहमदाबाद में तो इस दिन बड़े बड़े पतंगबाज अपने तंज लड़ाते हैं। अलसुबह से ही देर शाम तक आसमान सतरंगें सपनों से सजा होता है।  हर हाथ का सपना सातवें आसमान तक की उड़ान भरता है। पतंग हर अरमान को मानों पंख प्रदान कर आसमान पर पेंच लड़ाती हुई दिखती है और उस उड़ान के साथ मन भी मौजूं हो जाता है।
  आज का दौर तथाकथित आधुनिकता का दौर है।  मशीनीकृत इस युग में भावनाओं का कोई मोल नहीं है।  भीड़ में एकाकी जीवन जीता हुआ व्यक्ति गलाकाट प्रतिस्पर्धा में पिस रहा है और इन सब में वह खुद को कहीं बहुत पीछे छोड़ आया है।  आज जब भावनाओं का सैलाब परोक्ष रूप से सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर उड़ेला जा रहा है और आभासी शांति की तलाश की जा रही है तब आवश्यकता है उस उत्सवधर्मी संस्कृति को लौटा लाने की जिससे हमारे युवा इस आपाधापी के युग में कुछ पल खुद के करीब गुजा़र सकें।  वर्तमान में जब युवा वर्ग परम्पराओं से दूर हट रहा है, पाश्चात्य संस्कृति का मुरीद हो रहा है और अपने ही खोल में सिमट रहा है उस समय आवश्यकता है उन्हें जड़ों की और खींचने की।  यह संभव है इन्हीं त्योहारों की गज़क मिठास से जो कि उल्लास और मस्ती के पर्याय हैं। आज जिन अनजान खतरों को देखकर देश पग पग पर खंडित हो रहा है उसका संभार और एकता को पुनर्स्थापित करने में ये त्यौहार महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं।


Friday, January 2, 2015

                                 एक ज़रूरी बात........  
आज के परिप्रेक्ष्य में बात की जाए तो अनेक समस्याएँ विकास की राह में रोड़ा बन कर बैठी हैं। इनमें आतंकवाद और स्त्री अस्मिया पर हो रहे हमले सर्वाधिक चिंता का विषय है। लगातार घट रही इम घटनाओँ पर गौर करें तो मन खिन्न हो जाता हैं। बात गत वर्ष की ही की जाए तो पेशावर का खौफनाक मंजर दिल को दहला देता है। वो कंधे जिन पर सुनहरे भविष्य को संजोए  जाने वाले बस्ते लदे हुए थे आज बंद पड़े हैं, उन्हें खोलने वाले नन्हें हाथ अब दुनिया से कूच कर गए है। मांओं की आँखे जिनके दस मिनट देर से लौटने पर ही बैचेन हो जाया करती थी वे उन खुले दरवाजों को बस ताकती ही रह गई हैं और वे बच्चे जन्नत चल गए। पेशावर के आर्मी स्कूल में हुए 138 बच्चों का बालसंहार हर हृदय को द्रवित कर देता है। आज सभी आतंकवाद के खिलाफ लामबंद होने की बात कह रहे हैं परन्तु आखिर कब तक हम ऐसे घिनौने कृत्यों के होने की बाट जोहते रहेगे जो मानवता को शर्मसार कर रहे हैं । आतंकवाद हमारे भविष्य पर हमला कर रहा है और हम हैं कि धर्म पर राजनीति कर रहे हैं। जिन आतंकवादियों के निशाने पर निरीह मासूम बच्चे थे, धर्म तो उनका भी था। कैसा था यह धर्म? क्या धर्म स्वार्थ सिखाता है, क्या धर्म कहर होता है या धर्म धार्मिक उन्माद सिखाता है? सीधी बात ऐसे दहशतगर्दियों या आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता, क्योंकि धर्म तो मानवता का पाठ पढ़ाता हैं। वर्तमान समय जब संक्रमण का है और जब तमाम मानवीय आस्थाएँ बिखरी पड़ी है उस समय आतंकवाद जैसे दानव का फिर सर उठाना किसी भयानक तूफान के आने की पूर्व सूचना है। 26/11 अभी हम भूले भी नहीं थे कि पेशावर के नन्हें  फरिश्तों के शहीद होने की खबर रह-रहकर मन को कचोट रही है। गली-कूचे इतने वीरान और गमगीन है कि लग रहा जैसे हर कोई मर्सिया पढ़ रहा है। जरा सोचिए आखिर कैसी भीड़ का हिस्सा हैं हम । अपने बच्चे के लिए आखिर कैसी दुनिया बना रहें हैं हम।
जो बच्चे चले गए वे बिल्कुल आम बच्चों जैसे थे। उन बच्चों में से कुछ अब भी हैं जो हमलों में बच गए हैं जिन्होनें अपने दोस्तों को और अपनी टीचर को अपनी आँखों से छलनी होते देखा है। उनके गर्म खून को अपने हाथों से महसूस किया है। वे सभी उस समय एकता का पाठ पढ़ रहे थे। तालीम ली जा रही थी उतनी ही पाक तालीम दी भी जा रही थी। उनके यूनिफार्म पर बैजेज लगे थे जिन पर लिखा था ‘I shall rise and shine’ पर वो इस कदर चमकेंगे ये किसने सोचा था। 16 दिसम्बर जो भारत के इतिहास में पूर्व से ही काला दिन है पेशावर के इस बाल संहार ने इस दिन की कालिमा को ओर अधिक गहरा दिया। ये घटनाएँ हमें कहाँ ले जा रही हैं। मानवता आज स्वार्थी मानसिकता और दहशतगर्दों के पैरों में बंधक बनी हुई है। जब समय की बयार विपरीत बह रही है तब आज मैं बड़ी ही आशा से हमारे देश के युवाओं की ओर ताक रही हूँ। 2021 में हमारा देश विश्व में युवाओं की सर्वाधिक संख्या वाला देश होगा। ऐसे समय युवाओं पर मानवता की रक्षा  करना और उच्च मानवीय गुणों का निर्वहन करना दोहरी जिम्मेदारी है। अगर हम एकजुट होंगे और साम्प्रदायिक अलगाव, क्षेत्रीयता आदि प्रवृत्तियों से विलग रहेंगे तो आतंकवाद और अन्य सामाजिक बुराईयां नेस्तनाबूद हो जाएगी। छात्राओं आप समझदार हैं, लिंग आधारित जिस भेदभाव की बात आज की जाती है उस क्रम में मैं यह कहना चाहूँगी कि यह विभेदीकरण आपके कमजोर होने के कारण नहीं वरन् सबल होने के कारण है। हम स्त्रियाँ आधी नही वरन् पूरी आबादी है हम अधिक संवेदनशील हैं अतः समाज और संस्कृति को सहेजने का जिम्मा भी हम पर है।

      आज जब वैश्विक परिदृश्य पर आतंकवाद और राष्ट्रीय फलक पर स्त्रियों के प्रति अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं तब सर्वाधिक आवश्यकता है युवा वर्ग को चैतन्य होने की क्योंकि केवल तभी हम वैश्विक और राष्ट्रीय पटल पर एक बेहतर मानवीय समाज की स्थापना का स्वप्न देख सकते हैं। देश का युवा अगर संगठित है, और उसमें हृदय और बुद्धि का सामंजस्य है तो मानवता के विकास का यह रूपक जो आज आप और हम चाह रहे हैं। वह अधिक दूर नहीं। दरअसल समेकित प्रयासों से ही हम मानवीय संवेदनाओं को सहेज सकतें हैं। मानव के आधुनिक युग में निरन्तर विचारवान होने पर भी साल दर साल हिंसा के आंकड़े निरन्तर बढ़ रहें हैं कभी अभिव्यक्ति पर हमले हो रहें हैं तो कभी मासूमों को निशाना बनाया जा रहा है हिंसा का यह बढ़ता कुहासा मानवीय संवेदनाओं और ह्रदय की तरलता को जमाता जा रहा है।  धर्म की संकुचित मानसिकता अनेक विसंगतियों को  और एक धार्मिक उन्माद को पैदा कर रही है। हाल ही में घटित अविजित की नृशंस हत्या इसी धार्मिक उन्माद की चरम अवस्था है।  इससे पहले की तमाम विमर्श और मानवता हाशिए पर आ जाए और सभी संवेदनात्मक पहलू कोरे इतिहास में दर्ज हो जाए उससे पहले  वैचारिक एकता को सुदृढ करते हुए इन ताकतों को ऐसा माकूल ज़वाब देना होगा कि ये नेस्तनाबूद हो जाए।  हाँ बदलाव की प्रक्रिया में  वक्त लग सकता है पर एक शुरूआत तो की ही जानी चाहिए।