जीवन केवल तर्कों पर आधारित रहकर नहीं जिया जा
सकता यही कारण है कि प्रेम के अजस्र सोते की मनुष्य को आवश्यकता है और जब वह मैत्री
के शिखर पर पहुंच कर प्रवाहमान होता है तो फिर प्रेम अखण्ड हो जाता है।
अपने हमराह
के विचारों का स्वागत करना, समस्याओं पर सहमंथन करना, स्वीकृति अस्वीकृति दोनों का
सम्मान करना, सुख दुख को साझा बिताना प्रेम और मैत्री के उच्चतम पड़ाव है। मित्रता
का स्थायी भाव ही परस्पर समन्वय और सहभागिता है यही कारण है कि जब मित्रता किसी भी
रिश्ते में उतरती है तो वह एक ऐसे पुल का निर्माण करता है जिसमें दो विरोधी व्यक्तित्वों
का मिलन हो जाता है। आमतौर पर जिस दैहिक आकर्षण को प्रेम कह दिया जाता है वह प्रेम
नहीं है वह प्रेम की क्षणिक अवस्था है जो आकर्षण समाप्त होते ही लुप्त हो जाती है.
वास्तविक प्रेम तो कामना, आशा और वासना विहीन होता है। इस प्रेम का न कोई आदि होता
है ना ही अंत। किसी आध्यात्मिक पगडण्डी की
ही तरह यह युगल को उस आनंदावस्था तक पहुंचा
देता है जहां कोई विरला ही पहुंच पाता है। सच है
प्रेम से बड़ा जिंदगी का ककहरा और कोई नहीं हो सकता जो जीवनपर्यंत साझा स्मृतियों,
जीवंत संवेदनाओं, भावाकुल तन्मयता और विरह की उदासियों के माध्यम से सतरंगी शैली में
जीवन के अनमोल शब्द कोश का निर्माण करता रहता
है।
प्रेम उस धड़कती सांस की तरह है जिसके बिना जीवन बेमानी है। इस बारे में मैक्समूलर कहते हैं कि " एक फूल
नहीं खिल सकता अगर धूप ना हो और कोई इंसान जी नहीं सकता अगर मोहब्बत ना हो "