भारतीय
समाज का एक बड़ा वर्ग मध्यमवर्गीय है। वस्तुतः यही वह वर्ग भी है जो अर्थव्यवस्था
की नाप-जोख तय करता है। भारतीय मध्यमवर्ग अपनी बचत के प्रभावी तरीकों के चलते
दुनियाभर में आकर्षण का केन्द्र भी है। नेशनल काउंसिल फॉर एप्लायड इकॉनामिक रिसर्च के एक सर्वे के माध्यम
से यह रिपोर्ट सामने आई है कि भारतीय मध्यमवर्ग मजबूत स्थति में है और देश की
अर्थव्यवस्था इसी के कांधों पर है। अगर इसकी तह में जाएँ तो इसकी मजबूती का कारण
है वे छोटे-छोटे निवेश जिनके माध्यम से यह वर्ग अपने आस के मोतियों को भविष्य के
लिए सहेजता है। मध्यवर्ग के आर्थिक सुढृढ़ होने में इस वर्ग की गृहणियों का भी
योगदान है जो छोटी-छोटी बचत करके स्वर्ण आभूषणों में निवेश करती हैं। यह निवेश
उनके लिए अनेक समस्याओं के निजात का कारण भी बनता है। साथ ही आध्यात्मिक गुरू भारत
के मंदिरों में भी अकूत स्वर्ण संपदा है, जिसका यदि
उचित निवेश किया जाए तो अर्थव्यवस्था नई
ऊँचाईयों को छू सकती हे। सोने का हमारे देश में इतना आकर्षण है कि विवाह अवसरों,
हर छोटे बड़े पर्व से लेकर मांगलिक कार्यों के समय इसकी खरीद इतनी बढ़ जाती है कि बहुत
अधिक मात्रा में इस मांग को पूरा करने के लिए आयात को बढ़ाना पड़ता है। पिछले
वर्षों में अगर सोने के आयात इंडेक्स पर नजर डाले तो विश्व स्वर्ण परिषद के अनुसार 2015 में देश में
सोने की मांग 900 से 1000 टन रही। वर्ष 2014 में भी बढ़ती माँग के चलते 891.5 टन
सोने का आयात किया गया ।
गौरतलब
है कि चीन को हाल ही में आर्थिक मंदी के दौर से गुजरना पड़ा था इसका भारतीय
अर्थव्यवस्था पर भी मिला-जुला असर पड़ा था और मेक इन इंडिया योजना भी इसके तहत
प्रभावित हुई थी। इस दौर से सीख लेते हुए एक ऐसी योजना की माँग उठने लगी जो
अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान कर सके। इसी संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 5 नवम्वर 2015 को स्वर्ण जमा योजना की औपचारिक शुरूआत की थी। इस के तहत अशोक चक्र
के चिन्ह वाली भारत स्वर्ण मुद्रा योजना समेत सोने में निवेश संबंधी तीन योजनाएँ चलाने का निर्णय लिया। अन्य दो योजनाओँ में स्वर्ण मौद्रिकरण योजना
तथा सावरेन स्वर्ण ब्रांड योजना है। स्वर्ण जमा योजना , 1999 की
योजना का ही विस्तार है जिसके माध्यम से सरकार, 5,40,000 करोड़ रूपये के 20.000 टन
सोने के एक हिस्से को , बैंकिंग प्रणाली में लाना चाहती है। इस योजना को सरल बनाने
तथा लोगों की इसमें भागीदारी बढ़ाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने सरकार के
परामर्श से 21 जनवरी 2016 को एक मास्टर
डाइरेक्शन जारी किया। दिशानिर्देशों के मुताबिक, बैंक इस
तरह की जमा पर ब्याज दर तय करने के लिए स्वतंत्र होंगे और जमा का मूल व ब्याज सोने
में वर्णित होगा। केन्द्रीय बैंक ने कहा है कि परिपक्वता
पर मूल व ब्याज का भुगतान जमाकर्ता की इच्छा पर किया जाएगा। विमोचन के समय वह स्वतंत्र होगा कि , सोने के
बाजार मूल्य के आधार पर, सोने और जमा ब्याज के बराबर मूल्य में भारतीय रुपये में
भुगतान लेना चाहता है या सोने के रूप में । इस संबंध में अपनाए जाने वाले विकल्प
को जमाकर्ता द्वारा सोना जमा करते समय लिखित में दिया जाएगा और इसे बदला नहीं जा
सकेगा। संबद्ध देय तिथि पर ब्याज का भुगतान जमा खातों में किया जाएगा और इसे जमा
के नियमों के मुताबिक एक अंतराल में या परिपक्वता पर निकाला भी जा सकेगा।
स्वर्ण जमा योजना का मकसद जमा योजनाओं में इस
तरह सुधार करना है ताकि मौजूदा आर्थिक स्थिति प्रभावशाली हो तथा योजनाओं का दायरा बढ़ाया जा सके। इसके तहत देश
के नागरिकों और संस्थानों के पास जो सोना है उसे उत्पादक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल
किया जाएगा। इसका दीर्घकालिक उद्देश्य यह
है कि इस तरह की व्यवस्था बनाई जाए जिसके तहत सोने के आयात पर देश की निर्भरता कम
हो ताकि घरेलू मांग को पूरा किया जा सके। संशोधित स्वर्ण जमा योजना (जीडीएस) और
स्वर्ण धातु ऋण (जीएमएल) योजना का संबंध
दिशा-निर्देशों में केवल परिवर्तनों से है। इऩ योजनाओं में सोने की कीमतों
में बदलाव का जोखिम स्वर्ण भंडार निधि के जरिए उठाया जाएगा। इससे सरकार को यह लाभ
होगा कि उधार लागत के संबंध में कमी आएगी जिसे स्वर्ण भंडार निधि में सीधे स्थोनांतरित
किया जाएगा।
इस योजना से भारत के नागरिकों, न्यासों
और विभिन्न धार्मिक संस्थानों के पास जो अनुपयुक्त सोना पड़ा हुआ है उसे इस्ते माल करके रत्नों एवं
आभूषण क्षेत्र को मदद दी जा सकेगी। इस कदम के तहत आगे चलकर सोने के आयात पर देश की
निर्भरता में भी कमी आने की उम्मीद है। इस
योजना में सोमनाथ मंदिर न्यास गुजरात का पहला मंदिर होगा जो अपने पास रखे सोने को
स्वर्ण मौद्रीकरण योजना में जमा करेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित इसके
न्यासियों ने मंदिर के स्वर्ण भंडार को योजना में निवेश करने की अनुमति दे दी
है।बताया जा रहा है कि मंदिर न्यास के पास 35 किलो सोना है। मंदिर न्यास अपने इसी अप्रयुक्त तथा अर्थव्यवस्था की भाषा में
मृत सोने को इस योजना में जमा करेगा। इस योजना के संदर्भ में तिरूपति मंदिर न्यास ने
यह मांग की है कि यदि सरकार जमा सोने पर ब्याज के रूप में भी सोना ही दे तो वह इस
योजना में शामिल होने पर विचार कर सकता है । कई न्यास इस
योजना से अपने कदम पीछे खींच रहे हैं। जिसका कारण निःसंदेह इस योजना के कई
कमजोर पक्ष हैं। छोटे निवेशकों के पास
आभूषणों के रूप में सोना है जिसे वे शायद
पिघले हुए रूप में नहीं देखना चाहेंगें। अगर
इन पक्षों पर गौर किया जाए और इस योजना संबंधी जागरूकता और शंकाओं का समाधान जन-जन
के बीच किया जाए तो इस योजना के सफल होने की उम्मीद की जा सकती है । डेड मनी को
आर्थिक शक्ति में बदलकर यह योजना भारतीय समाज को आर्थिक मजबूती प्रदान कर सकती है
। अगर यह योजना सफल रहती है तो यह काले धन पर नकेल कसने का भी
प्रभावी कदम बन सकती है।
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