Wednesday, May 30, 2018

चारदीवारी का सुख!!!

जानते तो हम सभी हैं बस कर नहीं पाते हैं..या सिर्फ़ सलाह भर दे देते हैं..और यूँ बस हो गई अपने-अपने कर्तव्य की इति श्री..पालना!???

हम श्वास ले पा रहें हैं, जल पी रहे हैं  क्योंकि कभी हमारे पुरखों ने हमारे लिए पौधे रोपें, बाग़-बग़ीचे और ताल बनाए। किसी झील या छाँव को देखती हूँ तो उन हाथों को सौ बार नमन करती हूँ...उस विचार को प्रणाम करती हूँ जो लोक-हित के लिए किसी ज़ेहन में कौंधा होगा।

कुछ देर ही सही  हमें अपनी भूमिका पर नज़र डालनी चाहिए..अपने दैनन्दिन क्रियाकलाप पर , शायद समझ आ जाएगा कि हम क्या कर रहे हैं।

यह ख़ुशख़बर तो नहीं कि मेरे पड़ोसी जोधपुर और जयपुर प्रदूषण के मामले में नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। मेरा मानना है ,मेरे (?) शहर को भी उसी सूची में होना चाहिए क्योंकि यह भी ज़रा भी कम तो नहीं सड़कों, झीलों को दूषित करने में।

प्लास्टिक, डिटर्जेंट, धूम,सिर्फ़ और सिर्फ़ दोहन प्राकृतिक प्रदेयों का...लगभग शोषण की हद तक दोहन..इसका अंजाम सोचती हूँ तो सिहर जाती हूँ। हवा और पानी के लिए प्यूरीफायर लग गए..मोबाइल एयर प्यूरिफायर भी जल्द हमारी नाक पर होंगे ही किसी अलम् की ही तरह..यही तो चाहते हैं हम।

जानती हूँ विकल्प नहीं है हमारे पास। हमारी जनसंख्या , हमारी असीमित आवश्यकताएँ ..बहुत समस्याएँ हैं पर हर हाथ सोच ले तो क्या संभव नहीं फिर।

हम यहीं तक सोच बैठे है ..चारदीवारी  का सुख ....चारदीवारी के भीतर!

सब्ज़ी अलग-अलग थैली में ही पैक होनी चाहिए..कचरा गाड़ी में नहीं तुरंत सड़क पर ही जाना चाहिए, ढेर सारे कीटनाशक के साथ ही पौंछा लगना चाहिए और एसी सदैव चालू ही रहना चाहिए। कितने उदार हैं ना हम ..हमें सैर के लिए हरियल जगहें चाहिए पर उन्हें सौग़ात में हम हमारा अवशिष्ट ज़रूर सौंप आएँगे। पर्वत, नदी, झील सब जगह प्लास्टिक का अथाह पारावार। नदियाँ वाकई हमारे ही दिए कैमिकल के फ़ैन उगल रही हैं...!

क्यों यही चाहते थे ना हम आप??????

#चारदीवारी_का_सुख

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