Sunday, May 3, 2020

राम कथा सुन्दर करतारी!






रामायण और महाभारत में कथानक को लेकर अनेक विमर्श खड़े हुए हैं और कई प्रसंगों में जबरन खड़े कर दिए गए हैं , सत्य है; परन्तु विमर्श की दिशा ठीक होनी चाहिए , चिंतन शोधपरक होना चाहिए अन्यथा कुपाठ  तो हर धार्मिक और मिथकीय कृति का होता ही रहा है।

कोई ठीक-ठीक इन लौकिक काव्यों का मनन करे तो सारे प्रमेय स्वत: ही हल होते दिखाई देते हैं... ये महाकाव्य सतर्क और सचेत होकर लिखे गए हैं...कई स्थलों पर तो स्वयं रचयिता नायक/ पात्रों से यह कहलवाता है कि नहीं इस कहे को यों , ठीक यों ही देखा जाना चाहिए ; और किसी अतिरंजना पर किसी वरिष्ठ, कभी किसी मित्र तो कभी किसी परिवारजन के माध्यम से सचेत भी करते हैं कि  मानवीय धर्म सर्वोपरि है ।

रामायण में हर संवाद , हर विमर्श (चिंतन) एक अन्तर्कथा को लिए है । रामायण की घटनाओं में सर्वाधिक प्रश्न सीता परित्याग पर खड़े हुए हैं और फिर जिस तरह राम उत्तररामायण में महानायकत्व के पूर्ण शशि से तनिक घटते नज़र आते हैं ; वहाँ यह संशय गहरा जाता है। यद्यपि इसी घटत को लेकर और नाना उपेक्षाओं को लेकर साहित्य को नवीन आयाम भी मिले।

सीता पुनि बोली (उपन्यास), साकेत (काव्य) रामकथा पर आधृत ऐसे ही कुछ उदाहरण हैं; जहाँ क्रमश:परम्परागत मूक सीता को आधुनिक मन की प्रश्निल मन:स्थिति की वाणी और उर्मिला , कैकयी को केन्द्र में लाने के प्रयास किए गए हैं ।

वस्तुत: रामायण   के प्रतिनिधि पात्रों की पीडा मूक है ; उन पर दायित्व और मर्यादा का भार भारी जिसे निर्वहन करते वे अतिमानवीय / दैवीय हो जाते हैं और वाल्मीकि जैसे स्थिर और त्रिकालदर्शी सीता की शपथ और पुन: परीक्षा पर विचलित । सीता के बाद जीवन के  उत्तरार्द्ध में  लक्ष्मण  परित्याग भी  विह्वल करता है। सरयू में राम-लखन और अयोध्यावासियों का विषाद से मुक्त होने के लिए स्वयं को समाप्त करना भी विचलित करता है; परन्तु महानायक को साकेत धाम पहुँचाने के लिए विषाद से मुक्ति का यह मार्ग सटीक जान पड़ता है।

भक्ति निर्मल करती है इसीलिए त्याग , शील  और मधुरा भक्ति भावों से ओतप्रोत रामकथा मन को धीर देती है , सबल बनाती है , आत्मबल प्रदान करती है तो अश्रुजल के प्रवहन से आत्मा को परिष्कृत भी करती है ।

यहाँ मानवीय गुणों की सीख देते कई स्थल हैं जिनसे नव युवमन इस विपद में अवश्य लाभान्वित हुआ होगा।


चित्र- राजा रवि वर्मा ( साभार-गूगल)

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