Monday, April 14, 2014

                    हमारा समय और भीमराव अंबेडकर

बाबा साहेब को बहुजन राजनीतिक चेता , विधिवेता और भारतीय संविधान के वास्तुकार के रूप में  भलिभांति जाना जाता है। उन्होने सर्वप्रथम दलितों और अन्य धार्मिक सम्प्रदायों के प्रति पृथक निर्वाचिका और आरक्षण देने की वकालत की । वे जीवन पर्यन्त दलित वर्ग में शिक्षा के प्रसार और उनके उत्थान के लिए काम करते रहे। उनकी नैतिक मूल्यों में गहरी आस्था थी । हमारा समाज आज अनेक सामाजिक और राजनैतिक विसंगतियों के विषम दौर से गुजर रहा है। मानव जीवन आज एक विचित्र स्थिति में आ पहुँचा है। निरन्तर असंतोष तथा नैराश्य स्त्री पुरूषों के मन में फैल रहे हैं। समाज के प्रत्येक क्षेत्र में जीवन मूल्य आज हाशिए पर पहुँच गए हैं। हर व्यक्ति अपने कर्म क्षेत्र से मुँह मोड़ कर स्वछंद हो गया है। निस्संदेह  नैतिक प्रमापों के प्रति यही अनास्था का भाव हमारे समाज में फैल रहे अनेक अपराधों के लिए पूर्णतः उत्तरदायी है। वर्तमान में नैतिक मूल्यों में हो रहे विचलन को समझने औऱ उसके निराकरण  के लिए डॉ अम्बेडकर का नैतिक दर्शन उपयोगी साबित हो सकता है।  समाज में समरसता की स्थापना के लिए बाबा साहेब नीत्शे व डार्विन के विचारों का विरोध करते हैं तो सिर्फ इसलिए कि जनतांत्रिक मूल्यों में उनका अकाट्य विश्वास है। वे भौतिक व शारीरिक शक्ति को नैतिकता का स्रोत नहीं मानते हैं।  उनका नैतिक प्रमाप इस बात पर बल देता है कि जीवन मूल्यों को सहेजने में हर व्यक्ति की भागीदारी होनी चाहिए। उनके अनुसार नैतिकता का मूल स्रोत मनुष्य की मनुष्य से मैत्री की जो आवश्यकता है, वही है। इसमें ईश्वर की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है और न ही ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए आदमी को नैतिक बनने की आवश्यकता  है। अम्बेडकर के जीवन दर्शन में व्यक्ति और उसकी स्वतंत्रता को अत्यधिक महत्व दिया गया था। वे सत्य ही आधुनिक समाज में बुद्ध की तरह अवतरित हुए और उपेक्षितों के मुक्तिदाता कहलाए। आज विषमताओं , संकीर्ण मानसिकता , स्वार्थप्रेरित राजनीति और छींटाकशी जैसी भयावह समस्याओं  से गुजरती 21 वीं सदी को अम्बेडकर के सिद्धान्तों को अपनाने की आवश्यकता है। वर्तमान में सभी व्यक्ति आर्थिक प्रगति को ही सामाजिक बुराइयों के निराकरण का एकमेव उपाय मानते हैं जो तर्कसंगत नहीं है। आज दरकार है बुद्ध के उस नवीनीकृत सिद्दान्त  को व्यवहार में लाने की जो बाबासाहेब ने प्रस्तुत किया था । जो कि विशुद्द भातृत्व,स्वतन्त्रता और समानता के सिद्दान्तों पर आधारित था।