Monday, January 2, 2017

आने वाला हर पल सुनहले क्षणों की आमद हो!!


नया वर्ष बीते वर्ष की गर्म रेत पर उगता है। शायद इसीलिए बीते को बिसार कर नहीं वरन् पल-पल उससे सीख लेकर ही इस क्षण को बेहतरीन बनाया जा सकता है। विचारों की यही आमद चेतना का सुंदर इतिहास सिरजती है। नयी कार्ययोजनाएँ जहाँ नवांकुर को को एक नयी संजीवनी प्रदान कर सकती है वहीं मन को ऊर्जा से लबरेज़। राजनीतिक हलकों में उठापठक के बावजूद, आर्थिक मंदी और बंदी के बावजूद खुश रहने के मंज़र कई-कई हैं। उन्हीं मंजरों पर चलते हुए इस नव सूरज का स्वागत हमें बांहें पसार कर करना चाहिए। खुशियां औऱ गम हर जीवन का अनिवार्य हिस्सा है ।यह ठीक है कि कहीं इसकी मियाद कुछ अधिक तो कहीं कुछ कम ज़रूर हो सकती है परन्तु इनका फेरा हर ज़िंदगी में लगा रहता है। अवसाद ऊर्जा के चुकने की निशानी है पर कितना जादुई है ना कि विश्वास का रसायन  अगर घुलने लगे तो इसकी तासीर फीकी पड़ जाती है । जाने कितने शामियाने बनते हैं , उधड़ते हैं परन्तु जो रंग उत्साह रंगरेज का मन पर चढ़ने लगता है तो तमाम रंग फीके पड़ जाते हैं। प्रेम, ममत्व,दया जैसे सात्विक भाव इसी रंग के साथी है जो इस रावरे रूप को नित नया रंगते रहते हैं। माना दुनिया में जीवन में सब कुछ मुकम्मल नहीं मिलता पर यह जो मन है ना अपनी राह खुद बना लेता है बस मन में एक नैरन्तर्य विकसित होना चाहिए। विकसनशील तत्वों का हाथ पकड़ जीवन को बहुत सलीके से जिया जा सकता है। कई सामाजिक विसंगतियाँ हैं जिन पर कभी कलम चलाकर तो कभी हाथ बढ़ाकर उन्हें दूर करने का प्रयास किया जा सकता है। किसी उदास आँख को खुशी की चमक देने की कोशिश कर, किसी सर्द ख्वाब को ऊष्मा का ताप देकर या किसी भूख को तृप्त करके संतोष की कितनी जानिबें चढ़ी जा सकती हैं , ये विरले ही जान सकते हैं। पर आश्चर्य की यह विरल अनुभव प्राप्त करना बहुत आसान है। वैचारिकता के आईने में हम प्रतिपक्ष के सघन आईने को भी देख पाएं,वह जान पायें जो चमकते झूठ के पीछे अक्सर छिप जाया करता है तो जीवन को एक नयी दृष्टि मिल जाएगी। आईए , इस नव वर्ष में कुछ ऐसा करें जो सिर्फ हमारे लिए ना हो हमारे इर्द-गिर्द के चेहरों के लिए हो, परिवेश के लिए हो। गर यही सोचते रहें कि पहले हम क्यों तो फिर मिसाल किस तरह बन  पाएँगे। हमारा मन निर्दव्द्व होकर तमाम विसंगतियों पर विजय प्राप्त कर लें और यूँ हम विमल, निर्मल हो जाएँ तो शायद यह वर्ष हमारे लिए मील का पत्थर बन जाएगा। नहीं तो कैलेण्डर की तारीखें हर वर्ष बदलती हैं, बदलती रहेंगी औऱ हम हमारे वज़ूद को ही तलाशते रह जाएँगें। लौट रहा वर्ष स्त्री शक्ति के नाम रहा। बहुत कुछ खोने और नये पाने के नाम रहा। यह वर्ष तमाम पहलूओं से थिर हो, सुखद हो, कचनार फूलों की तरह कोमल हो, अमलतास की तरह सुनहला हो औऱ गुलमोहर की तरह हर जीवन के लिए सुर्ख उल्लास लिए हो । कामायनी के इसी संदेश के साथ नव वर्ष विश्व के लिए शुभ हो, प्रेमिल हो ,मंगलकारी हो...यही शुभेच्छाएँ...मंगलकामनाएँ!!!!!
विश्व की दुर्बलता बल बनें,
पराजय का बढ़ता व्यापार
हँसाता रहे उसे सविलास

शक्ति का क्रीड़ामय संचार!