Friday, March 27, 2009

मुलाकात.......

आज हमने किसी से मुलाकात की,

वह मुलाकात थी... पर थी एक दुखान्तिका।

जिंदगी के कई राज़ मालूम हुए हमें उससे,

आँखे नम हुई जो सुनी उसकी कहानी उससे।

वह एक नारी थी जो जीवन से हारी थी ,

नारीत्व ... था उसके लिए अभिशाप ....

रोज़ जलती थी वह चिंता की चिता मैं,

कड़वाहट मैं वह जो जी रही थी।

वह कोसती थी उसके नारी जीवन को......

बड़ा रोचक जीवन था उसका,

चूल्हा, चौका व चारदीवारी थी,जिसकी वह अधिकारिणी थी ।

बचपन लुटा था बरसों पहलें अब तो यादें भी धूमिल हो गई थी.....

6 comments:

अजय कुमार झा said...

bahut khoob, swaagat hai, aandaaje bayan pasand aayaa, aage bhee aapko padhne kee ichha hai likhtee rahein.aur haan apne blog ko khud hee follow na karein.

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

Vivek Ranjan Shrivastava said...

likhte raho.....

Deepak Sharma said...

*मैं भी चाहता हूँ की हुस्न पे ग़ज़लें लिखूँ*
*मैं भी चाहता हूँ की इश्क के नगमें गाऊं*
*अपने ख्वाबों में में उतारूँ एक हसीं पैकर*
*सुखन को अपने मरमरी लफ्जों से सजाऊँ ।*


*लेकिन भूख के मारे, ज़र्द बेबस चेहरों पे*
*निगाह टिकती है तो जोश काफूर हो जाता है*
*हर तरफ हकीकत में क्या तसव्वुर में *
*फकत रोटी का है सवाल उभर कर आता है ।*


*ख़्याल आता है जेहन में उन दरवाजों का*
*शर्म से जिनमें छिपे हैं जवान बदन *
*जिनके **तन को ढके हैं हाथ भर की कतरन*
*जिनके सीने में दफन हैं , अरमान कितने *
*जिनकी **डोली नहीं उठी इस खातिर क्योंकि*
*उनके माँ-बाप ने शराफत की कमाई है*
*चूल्हा एक बार ही जला हो घर में लेकिन *
*सिर्फ़ मेहनत की खायी है , मेहनत की खिलाई है । *


*नज़र में घुमती है शक्ल उन मासूमों की *
*ज़िन्दगी जिनकी अँधेरा , निगाह समंदर है ,*
*वीरान साँसे , पीप से भरी धंसी आँखे*
*फाकों का पेट में चलता हुआ खंज़र है ।*

*माँ की छाती से चिपकने की उम्र है जिनकी*
*हाथ फैलाये वाही राहों पे नज़र आते हैं ।*
*शोभित जिन हाथों में होनी थी कलमें *
*हाथ वही बोझ उठाते नज़र आते हैं ॥ *


*राह में घूमते बेरोजगार नोजवानों को*
*देखता हूँ तो कलेजा मुह चीख उठता है*
*जिन्द्के दम से कल रोशन जहाँ होना था*
*उन्हीं के सामने काला धुआं सा उठता है ।*


*फ़िर कहो किस तरह हुस्न के नगमें गाऊं*
*फ़िर कहो किस तरह इश्क ग़ज़लें लिखूं*
*फ़िर कहो किस तरह अपने सुखन में*
*मरमरी लफ्जों के वास्ते जगह रखूं ॥*


*आज संसार में गम एक नहीं हजारों हैं*
*आदमी हर दुःख पे तो आंसू नहीं बहा सकता ।*
*लेकिन सच है की भूखे होंठ हँसेंगे सिर्फ़ रोटी से*
*मीठे अल्फाजों से कोई मन बहला नही सकता । । *

*Kavyadhara Team*
*(For Kavi Deepak Sharma)*
*http://www.kavideepaksharma.co.in*
*http://kavideepaksharma.blogspot.com*
*http://sharyardeepaksharma.blogspot.com*

*( उपरोक्त नज़्म काव्य संकलन falakditpti से ली गई है )*
*All right reserved with poet.Only for reading not for any commercial use.*

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

सुन्दर अभिव्यक्ति.....आभार

GANGA DHAR SHARMA said...

बहुत अच्छा मित्र . सतत लिखते रहो. शुभ कामनाएं