Monday, April 4, 2016

रूपहले पर्दे का स्याह पक्ष

                          
घटनाएँ बता रही हैं कि युवा मन अवसाद की ज़द में ज़ल्द आ जाता है। वो दौड़ में खरगोश की भाँति चपल और मन को पवन की गति सा तेज दौड़ाने का आदी होता है। इसी अधैर्य और भावनाओं का भूचाल उस मन को अक्सर अस्थिर कर देता है। अकेला युवा मन अक्सर सफलता असफलता के मापदण्डों को जीवन का अंतिम समीकरण मान बैठता है । कई नाजुक पलों में प्रेम का मोहपाश भी इस मन पर इस कदर  हावी हो जाता है कि दबे पाँव अनेक अनचाहे नशे भी  जीवन में दस्तक दे देते हैं। प्रेम जीवन का आखिरी विकल्प नहीं हो सकता  पर यह भी सच है कि कोमल भावुकता किसी विकल्प को नहीं देखती। प्रेम किसी मन की हार नहीं हो सकती , प्रेम तो जिए जाने का नाम है पर सितारों के संसार में सारे समीकरण उलट दिखाई देते हैं। एक चाँद की ख्वाहिश में जाने कितने तारे वहाँ टूटते हुए दिखाई देते हैं और उगते हुए  तारों का  यूँ जमींनशीन होना मन को प्रश्निल कर जाता है कि आखिर क्यों किसी चमकीले सपनों का कारवां महज़ चौबीस बरस में थम जाता है। आखिर क्यों ज़ज्बातों की रवानगी ज़िंदगी के किसी कठिन मोड़ पर फीकी पड़ जाती है। आखिर क्यों रूपहले पर्दे से जुड़ी शख्सियतें भावनात्मक स्तर पर विचलित हो जाती हैं ।  अगर गौर किया जाए तो रूपहले पर्दे के स्याह पक्ष को उजागर करता यह सवाल साफ नज़र आता है कि आखिर क्या बात रही होगी कि सिने तारिका दिव्या भारती 19 साल में, जिया खान 25 साल में तो बालिका बधू फेम प्रत्यूषा 24 साल में ही अपने सपनों के सफर के दिये अनजान कारणों के चलते बुझा देती हैं।

प्रत्यूषा बैनर्जी एक नवोदित कलाकार के रूप में बालिकावधू धारावाहिक में राजस्थान को प्रस्तुत कर रही थी पर उसका असामायिक निधन ग्लैमर के अकेलेपन से भरे संसार की भयावह त्रासदी को उजागर करता है। हर आत्महत्या सोचने को मजबूर करती है और ध्यान ले जाती है उन पहलूओं की ओर कि क्या कारण है कि महत्वाकांक्षा और अवसाद आखिर वहीं क्यों जन्म लेता है जहाँ संसार सबसे अधिक चमकीला नज़र आता है। ये बातें इस ओर भी ध्यान खिंचती है कि जीवन सुख दुख को बराबर हिस्से में लेकर चलता है।  केवल सुख की चाहना और दुख के आने पर पैर पीछे खींच लेना समझदारी नहीं है। आखिर क्यों दरकते संबंध सूत्र व्यक्ति को इतना तोड़ देते हैं कि वो अवसाद के फंदे पर लटक जाता है। अगर इन कारणों की तह में जाए तो असामान्य जीवन शैली, अजनबीपन और अकेलापन वे कारण नज़र आते हैं जो व्यक्ति को भीतर से तोड़ देते हैं। ग्लैमर की चकाचौंध वक्ती होती है और ऐसे में अगर जीवन महात्वाकांक्षा और अनियमितता से भर जाए तो उसे टूटते देर नहीं लगती। प्रेम जीवन जीने की ऊर्जा देता है परन्तु चुनाव अपरिपक्व हो तो वह यूक्लेप्टिस की भूमिका अदा करने लगता है जिसे बस आँसुओं की नमी से ही भरा जा सकता है। कैरियर स्थायित्व की माँग करता है मगर ग्लैमर की दुनिया में टी आर पी और हर शुक्रवार की भीड़ सफलता के आँकड़े तय करती है। यहाँ व्यक्ति का कल सुरक्षित नहीं है। रंगमंच के कलाकार अत्यंतसंवेदनशील होते हैं और यही कारण है कि जीवन के समीकरणों को बैठाने में  ये सितारे अक्सर  चूक कर जाते हैं। इन हालातों में अगर कहीं ज़रा सी ठेस लगती है तो भावनाओं का तुफान और क्षणिक भावावेश  इस जीवन को काँच की मानिंद बिखेर कर रख देता है। अवसाद जनित ह्रदय प्रेम चाहता है मगर इस प्रेम में अगर स्वार्थ और अलगाव हावी हो जाता है तो मन नितांत अकेला हो बेआवाज़ टूटता है।  अगर प्रेम सिर्फ अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हो और उस वक्त आपको अकेला छोड़ दे जब आपको उसकी सबसे ज्यादा ज़रूरत हो तो उस रिश्ते पर सवाल उठना लाज़मी है।
ग्लैमर की दुनिया एक तपस्या की मानिंद है जिसे अपनाकर व्यक्ति लोकप्रियता के चरम पर तो पहुँच जाता है परन्तु अपनी निजी जिन्दगी में बिल्कुल अकेला हो जाता है। पैसे और शोहरत की होड़ में व्यक्ति सामाजिक रूप से अलग हो जाता है। यहाँ वर्चुअल दुनिया में तो उनके अनेक प्रशंसक होते है परन्तु वास्तविक जीवन कोरा का कोरा ही रह जाता है। कच्ची उम्र में पके अनुभवों से गुजर रहा मन जीवन को संभाल नहीं पाता और नतीजतन घटती है ऐसी अनेक घटनाएँ जो व्यक्ति के इर्द-गिर्द विवादों का ताना-बाना बुनती है। प्रत्यूषा भी ऐसे ही अनेक विवादों से गुजर रही थी, कभी पुलिस पर आरोप-प्रत्यारोप तो कभी रिश्तों में अलगाव। ऐसी स्थितियाँ अगर सतत बनी रहती है तो व्यक्ति अवसाद मे पहुँच जाता है। इन घटनाओं से बचने में माता- पिता, परिवार  और दोस्त अहम भूमिका निभा सकते हैं क्योंकि जब कोई शोहरत और लोकप्रियता के पायदानों पर चढ़ रहा होता हैं तब  भावनात्मक असंतुलन चरम पर रहता है। ऐसे में उस मन को संबल की अधिक आवश्यकता होती है।  अकेलापन और परिवार से दूरी उन रूहों को रीत देती है। रसायन विज्ञान बताता है कि जो तत्व अस्थिर होता है वो अपने को खाली कर या अपने में भरकर स्थायित्व प्राप्त करना चाहता है । जीवन की हकीकी  और ग्लैमर की इस सपनीली दुनिया में भी खाली मन हमविचार साथी के काँधे ढूँढता है परन्तु इस  तलाश में वह यह भूल जाता है कि यहाँ छलावा अधिक है। स्त्री यहाँ भी भावनाओं के रेशों में उलझ जाती है और जब ये कोमल तंतु बिखरते हैं तो उनका अस्तित्व ही बिखर जाता है, नैसर्गिक चीजें खतम हो जाती है और एक मासूम व्यक्तित्व के साथ जुड़ जाते हैं अनेक विवाद।  
सवाल गहरातें हैं कि आखिर क्यों चमक दमक में रहने वाले लोग भी ज़िंदगी से हार जाते हैं। दरअसल इऩ जिंदगियों पर शिखर पर बने रहने का, भविष्य और रिश्तों को बनाए रखने का सतत दबाव बना रहता है ।  रिश्तों में खटास या कटुता उन्हें अधीर कर देती है औऱ क्योंकि उनकी भावनाओँ का केन्द्र एक व्यक्ति मात्र होता है ,ऐसे में वो टूट कर बिखर जाते हैं।  किसी मुकाम पर पहुँचना और उस मुकाम पर कायम रहना बेहद चुनौतिपूर्ण होता है। हर मुकाम और कैरियर के अपने दबाव होते हैं और ये  आर्थिक सम्पन्नता ,शौहरत और फ्रेंड फौलोइंग से नहीं भरे जा सकते। इन रूहों को सार्थक संवाद और मार्गदर्शन की अधिक आवश्यकता होती है।

यहाँ एक बात औऱ सामने आती है कि परिवार में व्यक्ति काफी सुरक्षित महसूस करता है पर जब बाहर निकलते हैं तो हम अपने आप में सिमट कर रह जाते हैं। लिव इन रिलेशनशिप अवधारणा भी  असुरक्षा भाव को लेकर चलती है ।यह रिश्ता अपने आप में ही बहुत तल्ख़ तजुर्बों को लेकर चलता है।  मायावी दुनिया में हर रिश्ता भ्रम में लिपटा होता है परन्तु युवा पीढ़ी को यह समझना होगा कि केवल मोह के कच्चे धागे ही जीवन जीने का अंतिंम विकल्प नहीं है। ऐसे में जिन बातों की और ध्यान देना आवश्यक है वह है अपनों से जुड़ाव और भावनात्मक साझेदारी । यहाँ अपील है तमाम अभिभावकों से कि आपके बच्चे भले ही बड़े हो , सुखी हो परन्तु उन्हें भावनात्मक सुरक्षा का माहौल जरूर दिया जाए। ये हादसे आगाह करते हैं कि आज की युवा पीढ़ी को भावनात्मक खाद की अधिक ज़रूरत है ।  हम  दिलों के बीच की अबोली दीवार को पाटकर  सहज संवाद  के माध्यम से उस अवसाद पर काबू पाने में सफल हो सकते हैं जो कई ज़िंदगियों को त्रासद अंत की ओर धकेल रहा है। 



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