Monday, October 16, 2017

स्मृतियों में बसी हैं स्मिता!



एक चेहरा जो बेहद सादा है पर कशिश इतनी कि आँखें उस पर ठिठक कर रह जाएंँ। गोरे रंग से इतर सांवले का सम्मोहन, जिसके लिए भारतीय स्त्री को जाना जाता है,उसकी बेमिसाल मिसाल हैं स्मिता। 'साड़ी में लिपटा श्याम ज्यों' , तो इस छब में स्मिता सा कोई ओर नज़र नहीं आता। उसकी उन आँखों की मुरीद हूँ जिसकी आँखों में मानों सात समंदर ठहरे हैं।

स्त्री हर स्मृति में ठहरी होती है, जैसे कि हर पल की धड़ाधड़ी को करीब से महसूस करती हुई। जिन लम्हों, छुअनों का अन्य के लिए कोई मोल नहीं, उसे भी यह अन्या जी भर सहेजती है। एक मुस्कराहट, एक तल्खी, और जज़्बातों की गर्माहट को उससे बेहतर कोई ओर अपनी सांसों में व्याख्यायित नहीं कर सकता। उसकी आँखों का सावन तो जाने कितने युकलेप्टिस पीते हैं। इसी संजीदगी और स्त्री के स्त्री होने को सेल्यूलाइड  पर स्मिता जी भर जीती नजर आती है।

श्याम बेनेगल की 'चरण दास चोर' से आरंभ हुई यह यात्रा कई खूबसूरत मोड़ों से होकर गुजरती है। मंथन, बाज़ार, भीगी पलकें, भूमिका, चक्र, मंडी, आक्रोश, अर्द्धसत्य, रावण और मेरी प्रिय, 'आखिर क्यों' इन सभी फिल्मों की स्मृति, किरदारों के नाम सहित ज़ेहन में जीवंत है।  टेलीफिल्म सद्गति में भी उनका अभिनय कहाँ भूलाए भूलता है।

कुछ ना कह कर भी सब कह देने वाली बोलती आँखों के खिंचाव को आज भी उतनी ही शिद्दत से महसूस किया जा सकता है । अमूल का विज्ञापन इस खास चेहरे के कारण ही जाने कब से मेरे लिए खास हो गया था।  अनेक किरदार हैं जिनमें से एक है आखिर क्यों की निशा शर्मा। यहाँ स्त्री की कोमलता में छिपी सशक्तता को वे इतनी सादगी और सहजता से बयां कर देती है कि 'कोमल है कमजोर नहीं' पंक्तियाँ मन पर अमिट हो जाती हैं। जाने कितने-कितने किरदार हैं जिन्हें देख लगता है कि इसे केवल स्मिता ही निभा सकती थीं ..।

समानान्तर फिल्मों में जिस संजीदगी, गांभीर्य, सशक्त अभिनय और नैसर्गिक सौंदर्य की आवश्यकता हुआ करती हैं , वे सभी खूबियां स्मिता में देखी जा सकती हैं । स्मिता का जादू इस तरह है कि अब इस दौर में नंदिता में भी स्मिता की तलाश होने लगती है, हालांकि यह तुलना ठीक नहीं । यह जीवन इन पंक्तियों की तरह ही रहा कि दिलों पर राज तो किया पर मुहब्बत को तरस गए..
सादगी में लिपटी उन प्रश्निल आँखों का सौन्दर्य  वाकई एक दिलकश कशिश का अजस्र सोता है। यूँही कहाँ कोई आखिर दिल के करीब हुआ करता है।

#स्मृतियों_में_जीवित_श्यामल_गात

चित्र गूगल से साभार

1 comment:

अभिषेक सिंह said...

मेम आपने स्मिता पाटिल जी के जन्मदिवस पर उनके जीवन के बारे में कम शब्दों में हमारे समक्ष सुंदर-सी अभिव्यक्ति प्रस्तुत कि जिससे हमें भी उनके बारे में जानने का मौका मिला।
स्मिता पाटिल जी के बारे में एक छोटी- सी किंतु सारगर्भित टिप्पणी- सत्तर के दशक में आरम्भ होकर पंद्रह-बीस साल चले सार्थक और समानांतर सिनेमा आंदोलन,जिसे कला-सिनेमा का 'स्वर्ण-युग'भी कहा जाता है। इस काल में अनमोल व्यक्तित्व और विलक्षण कृतित्व के कुछेक महत्वपूर्ण उदाहरण मिलते है।
इनमें एक विशिष्ट नाम स्मिता पाटिल जी का हैं,जिनके आगे दिवंगत शब्द लगाने का साहस जुटाया ही नहीं जाता। स्मिता जी समानांतर सिनेमा का वो बड़ा हस्ताक्षर थी,जिनके आगे समय का काग़ज़ भी छोटा पड़ जाता है। वे ऐसी प्रतिभा सम्पन्न और भावप्रणव अभिनेत्री थीं, जिन्होंने अपने हर काम के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को सर्वोपरि रखा, हर चरित्र को अपने होने का अर्थ दिया,हर निर्देशक-फ़िल्मकार की दृष्टि को सम्प्रेषणीयता को अपने में आत्मसात किया और अनेकानेक गुणों से सिनेमाघर में बैठे दर्शक को कभी चमत्कृत,कभी चकित तो कभी हतप्रभ करके रख दिया।
वो स्मिता पाटिल जी हमारी स्मृतियों में है_ _।
उसी मोहक और सांवले आकर्षण के साथ अपनी बड़ी-बड़ी आँखो से कुछ खोजते हुए, एक प्रश्नाकुल और उत्तरापेक्षी भगिमा लिए।
स्मिता पाटिल जी अपने जन्म के वक्त हंसती हुई इस दुनिया में आई थीं, इस वजह से उनका नाम'स्मिता' रखा गया है।
मेम आपने इस सुन्दर से आलेख में स्मिता जी के बारे में सही बताया कि कुछ ना कह कर भी सब कह देने वाली बोलती आँखो के खिंचाव को आज भी उतनी ही शिद्दत से महसूस किया जा सकता है।