Tuesday, December 25, 2018

#हँस_तू_हरदम_खुशियाँ_या_ग़म

कोई मसीहा उठता है आधी रात
अनगिनत बिखरे सपनों को रफू करने
खाली जेबों को सिक्कों की खनक देने
और उन आँखों में चमक का ईंधन भरने
जो काल के भाल पर
चमकीली इबारत लिखने की तैयारी में है

अनुभव की उसकी गठरी में
अनगिन खनकती सीखें हैं
कई तोहफ़ों  में घुली सहेजन है
और वहीं डर को शिकस्त देती
गुदगुदाती हथेली की आहट है

भावनाओं का वासंती कपास लिए
कोई मीलों का सफर  तय करता है

भोर-अलगनी पर
ख़ुशियों की बत्तीसी सजाने
      यों भी भला कोई
            ओस के मोती चुना करता है ?

चाँदी की ढाढ़ी वाले तारों में
वो सूरज की आँच छिपाता है
तकिये की ओट में रखी फरमाइशें उगा
सीने में मुस्कुराहटें सजाता है

रात के अंतिम पहर की टिक-टिक में
वो टकटकी लगाए रहता है
सर्द रात में गालों को ललाई देते-देते
और बेवज़ह ही
कहीं लौटने का बहाना लेकर
कोई....  चुप से यों
‘मैरी क्रिसमस’ कह सो जाता है

सुनो!  चेहरों पर आशवस्तियाँ
और योंही कभी दरवाज़े पर कुछ ख़ुशियाँ टँगी मिले
तो उस कीमियाग़र को ज़रूर खोजना
जो दर्द को मुस्कान में बदलने का हुनर जानता  है!

विमलेश शर्मा
तसवीर गूगल से साभार

#Merry_Christmas

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