भोर के उगने का एक सलीक़ा है !
फूल के खिलने में समूचे तंत्र का योगदान है!
हवा के , नदियों के बहने का भी एक रहस्य है; गति है; निश्चित यति है।
हम सभी जानते हैं इस सरल-से दिखने वाले गूढ सत्य को ।
पर फिर इस उगने और खिलने पर ही क्यों कर यहाँ-वहाँ प्रश्न-चिह्न लगा दिए जाते हैं!
प्रश्नों के सघन मेघ मानस-पटल पर हैं पर सत्त्व का संबल भी मौन ही सही पर थामे है। हो यों भी रहा कि नितांत अकेली दृष्टि भी जब विकल होकर आसमां को ताकती है तो वह हँसकर आशीष देता जान पड़ता है कि अभी राह पथरीली तुम्हें माँझने के लिए ही खड़ी है ।
परिपक्वता के स्वस्ति -पुष्प संभवत: इन राहों पर ही खिला करते रहे होंगे ।
आत्मा की तानें किसी वीतरागी के समक्ष ही नत होती हैं। वे मूक होती हैं उतनी मुखर नहीं। यात्रा करते-करते इतना तो जान लिया कि सब कुछ गति में है तो यात्रा सही ही चल रही है; कुछ अवरोध आ रहे हैं तो साधना फलित हो रही।
अध्यात्म के परदों से ऐसे ही संदेश सतत सुनाई देते रहते हैं।
यह टेक ही मन में अनायास एक स्वस्तिपुष्प उगा देती है।
#समर्पण
#स्वस्ति_पुष्प
विमलेश शर्मा
फूल के खिलने में समूचे तंत्र का योगदान है!
हवा के , नदियों के बहने का भी एक रहस्य है; गति है; निश्चित यति है।
हम सभी जानते हैं इस सरल-से दिखने वाले गूढ सत्य को ।
पर फिर इस उगने और खिलने पर ही क्यों कर यहाँ-वहाँ प्रश्न-चिह्न लगा दिए जाते हैं!
प्रश्नों के सघन मेघ मानस-पटल पर हैं पर सत्त्व का संबल भी मौन ही सही पर थामे है। हो यों भी रहा कि नितांत अकेली दृष्टि भी जब विकल होकर आसमां को ताकती है तो वह हँसकर आशीष देता जान पड़ता है कि अभी राह पथरीली तुम्हें माँझने के लिए ही खड़ी है ।
परिपक्वता के स्वस्ति -पुष्प संभवत: इन राहों पर ही खिला करते रहे होंगे ।
आत्मा की तानें किसी वीतरागी के समक्ष ही नत होती हैं। वे मूक होती हैं उतनी मुखर नहीं। यात्रा करते-करते इतना तो जान लिया कि सब कुछ गति में है तो यात्रा सही ही चल रही है; कुछ अवरोध आ रहे हैं तो साधना फलित हो रही।
अध्यात्म के परदों से ऐसे ही संदेश सतत सुनाई देते रहते हैं।
यह टेक ही मन में अनायास एक स्वस्तिपुष्प उगा देती है।
#समर्पण
#स्वस्ति_पुष्प
विमलेश शर्मा
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