Friday, February 17, 2017

सियासी भँवर में बदलते समीकरण



न इब्तिदा की ख़बर है न इंतिहा मालूम.... तमिलनाडु का सियासी दंगल इसी तर्ज़ पर समाप्त होता नज़र नही आ रहा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने, चन्द्रग्रहण लगा शतरंज की बाजी को उलट दिया है।  अन्नाद्रमुक नेता जे.जयललिता के निधन के बाद से प्रदेश औऱ पार्टी लगातार चक्रवातों के झंझावतों से गुज़र रही है। तमाम कयासों औऱ सियासी उलटफेर के बाद शशिकला के करीबी रहे अन्नाद्रमुक के ई पलानीस्वामी ने गुरूवार को तमिलनाडु के मुख्यंमंत्री पद की शपथ ली है। पलानीस्वामी के साथ ही उनके 31 सदस्यीय मंत्रीमंडल  को भी राज्यपाल सी विद्यासागर राव ने  चैन्नई स्थित राजभवन में शपथ दिलवाई है। यह घटनाक्रम चौंकाता हैं क्योंकि  इदापड्डी के पलानीस्वामी और उनके विरोधी  और पूर्व मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम दोनों ही अपने साथ अन्नाद्रमुक विधायकों का समर्थन होने की बात  लगातार कह रहे हैं। दोनों ने ही बुधवार को राज्यपाल से मुलाकात कर बहुमत का दावा भी पेश किया। दोनों ने ही बहुमत साबित करने के लिए वक्त दिए जाने की भी मांग की औऱ इन सब के बीच पलानीस्वामी की शपथ राजनीतिक कयासों की एक ओर राह खोल देती है। हालांकि  इस शपथ ग्रहण से ऊपरी तौर पर पार्टी में उठापठक पर भले ही अल्पविराम लग गया है पर  असली परीक्षा अब बहुमत सिद्ध करना होगा। इस मामले में संवैधानिक अड़चनें भी राह में आ सकती है क्योंकि राज्यपाल ने पन्नीरसेल्वम को मौका दिए बगैर ही  पलानीस्वामी को सरकार बनाने का न्यौता दे दिया है और इस पेच से यह मामला अदालत में जा सकता है। हालांकि एक बारगी जनाधार व विरासत के इस संघर्ष पर राज्यपाल सी.आर.विद्यासागर ने विराम लगा दिया है। पन्नीरसेलम तमाम प्रक्रिया औऱ उनके निष्कासन के विरोध में चुनाव आयोग जाने की तैयारी कर रहे हैं,संभवतः यह अपने बचाव की उनकी अंतिम कोशिश होगी।
राजनीतिक घमासान बहुत बड़ा तूफान लाते हैं। सत्ता पलट औऱ न्यायिक व्यवस्था के  कठोर शिकंजे के चलते चंद मिनटों में कोई धनकुबेर औऱ रसूखदार सलाखों के भीतर होता है। सजा के फैसला आने के दो घंटे के भीतर ही शशिकला की विधायकों के साथ बैठक औऱ उसमें लिए गए निर्णय उसकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चरम को दिखाते हैं। कार्यवाहक मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम औऱ 19 अन्य विधायकों को पार्टी से निकालने की घोषणा भी उनके राजनीतिक रूख को स्पष्ट करती हैं। इस कदम के माध्यम से यह भी साफ होता है कि पन्नीरसेल्वम को समर्थन देने वाला या पलानीस्वामी से द्रोह करने वाला अन्नाद्रमुक पार्टी की नज़र में भी दोषी कहलाएगा। इससे पूर्व शशिकला के संबंध में यह बात भी सामने आई थी कि उन्होंने  विधायकों को कथित रूप से बंधक बनाकर रखा है।  इसी क्रम में मद्रास हाइकोर्ट में दो विधायकों की तलाश के लिए हैबियस कार्पस भी दाखिल की गयी, जिसके जवाब में पब्लिक प्रोसिक्यूटर ने 119 विधायकों का लिखित बयान कोर्ट में पेश किया। सुप्रीमकोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में शशि को 4 साल की जेल औऱ 10 करोड़ के जुर्माने की सजा सुनाई है।  इस फैसले ने तमिलनाड़ू की राजनीति में फिर एक घमासान शुरू हो गया है। पन्नीर की राह का सबसे बड़ा रोड़ा कोर्ट ने हटा दिया था परन्तु शशि ने अपनी सक्रियता से तत्काल पन्नीर औऱ उनके समर्थकों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। फैसले के बाद चिनम्मा का मौज़ूदा सीएम बनने का सपना तो धूमिल हो ही गया है साथ ही वे अगले 6 वर्षों तक कोई चुनाव नहीं लड़ पाएगीं औऱ 10 वर्षों तक मुख्यमंत्री भी नहीं बन पाएँगी । परन्तु राजनीतिक महत्वाकांक्षाएँ पहाड़ जैसी विशाल होती हैं। वह अब भी ई पलानिसामी के ज़रिए पार्टी में अपना वर्चस्व बनाए रख सकती हैं। फैसले के बाद चिनम्मा ने बुधवार शाम बेंगलुरू में आत्मसमर्पण कर दिया और अब वह अपनी बेहिसाब संपत्ति जो कि 8% नहीं 541%  अधिक होने  के संबंध में  तीन साल,10 महीने औऱ 27 दिन की सजा काटेंगी। जाते-जाते पार्टी की इसी उठापठक में उन्होंने टीटीवी दिनकरन  औऱ एस वेंकटेश को पार्टी में शामिल किया जिन्हें पांच वर्ष पूर्व जयललिता ने निष्काषित कर दिया था। अपने भतीजे दिनकरन को अन्नाद्रमुक का महासचिव नियुक्त किए जाने को भी उनके पार्टी पर वर्चस्व को लेकर ही देखा जा रहा है।
आने वाले दिन तमिलनाडु की राजनीति के लिए अत्यंत संवेदनशील है। शशि के जेल जाने के बाद पार्टी के अधिकांश विधायक  पन्नीरसेल्वम के पक्ष में आ सकते हैं।  पार्टी टूट भी सकती है। अम्मा ने जेल जाते समय पन्नीर को नेता घोषित किया औऱ चिनम्मा ने पलानीसामी को । तमिलनाडु की राजनीति में  इतिहास किसी ना किसी रूप में सदा दोहराया जाता रहा है। विश्वासपात्रों को निकाला जा रहा है और बाहर वालों की घरवापसी हो रही है। एम जी रामचंद्रन के निधन के बाद भी राज्य में इसी तरह के सत्ता संघर्ष का दौर चला था।  मौज़ूदा पस्थितियाँ भी राज्य में राजनीतिक अस्थिरता के संकेत देती हैं। हालिया समीकरणों से द्रमुक को खासा लाभ मिलता दिखाई दे रहा है परन्तु अन्नाद्रमुक यदि राजनीतिक स्थिरता प्राप्त कर लेती है, बहुमत सिद्ध कर देती है तो तमाम उठापठकों पर स्वतः विराम लग जाएगा। कांग्रेस औऱ भाजपा तो वहाँ वैसे भी दर्शक की भूमिका में हैं। राज्यपाल पर स्थिर सरकार के लिए कदम उठाने के लिए दबाव हैं परन्तु सियासी दावपेंचों के अपने समीकरण हैं। तमिलनाडु के सियासी समीकरण से स्पष्ट नज़र आता है कि जनता भले ही पन्नीसेल्वन के साथ हो परन्तु मुख्यमंत्री पद की दावेदारी के लिए दोनों ही दावेदारों को विधायकों की आवश्यकता है ना कि मतदाताओँ की। शशिकला के पास अपने विकल्प हैं परन्तु पलनिसामी को बुलावा देकर मुख्यमंत्री ने अदालती विकल्पों की भी एक राह खोल दी है जिससे मामला उलझ सकता है। गौरतलब है कि पलानीसामी ने बहुमत से ज्यादा विधायकों की सूची राज्यपाल को सौंपी थी औऱ ऐसे में राज्यपाल ने उन्हें निमंत्रण देना उचित समझा। शक्तिपरीक्षण पन्द्रह दिन बाद होगा, पर तख्तापलट का यह घटनाक्रम अब एक अजूबा बन गया है। असंतुलन के इस दौर में राजनीतिक दाव-पेंच जोरों पर रहेंगे, जनता अस्थिरता के भंवर में पिसेगी परन्तु राह अब विधानसभा से ही निकलेगी। इस उठापठक के बीच जफ़र बरबस याद आते हैं-
             “कौन डूबेगा किसे पार उतरना है जफ़र, फैसला वक्त के दरिया में उतर कर होगा”

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