त्योहारों के मन में उल्लास बसता है ,जिस तरह बारिश की बूँदें मिट्टी पर गिर कर उसे एक सौंधी महक से सराबोर कर देती है उसी तरह त्योहार व्यक्ति मन के भीतर छिपी ऊर्जा को पुनर्नवा कर देते है। मकर संक्राति अर्थात् सूर्य के मकर राशि में आगमन का पर्व, फसल के खिलने औऱ पकने का पर्व ,सरसों के फूलने का पर्व पर अगर अजमेर के संदर्भ में बात की जाए तो यह अपने साथ धर्म के अनेक पहलूओं के साथ-साथ सद्भावना और मनुहारों को भी समेट कर चलता है। ख्वाज़ा गरीब नवाज की यह नगरी गंगा जमुनी तहज़ीब में रंगी हुई है । सूर्य के उत्तरायण होने का औऱ देवताओं के पृथ्वी पर आगमन का यह पर्व पुष्कर के घाटों पर अचानक ही श्रद्धालुओं की बाढ़ लेकर आ जाता है , जहाँ हर हाथ उठता है तो केवल श्रद्धा और दाता भाव से। तिल औऱ गुड़ की रेवड़ियाँ यहाँ हर मन को मिठास से भरती नज़र आती है वहीं रिश्तों को बाँधने में भी इस पर्व का विशेष महत्व है। पारिवारिक रिश्तों को मान देने की कुछ विशेष परम्पराएँ राजस्थान में ही दिखाई देती है जिनमें मन के पूनीत भावों से अग्रजों औऱ बड़ेरों को नेह की चादर ओढ़ाकर उनका सम्मान किया जाता है। मान और मनुहारों की यह महक शीत के प्रभाव में घुल कर उसमें ताप प्रवाहित कर देती है । वहीं दान करने की प्रवृत्ति संग्रह करने की भावना और अहम् को दूर करने में सहायक सिद्ध होती है।
यहाँ इस दिन छतें और मुंडेरे कुछ अधिक आबाद होती हैं। हर हाथ में आस की चरखी सजी होती है जो रिश्तों का मांझा कुछ ओर मजबूत करती है । नन्हें हाथों में थमी डोर और उड़ती रंग बिरंगी पतंगें आकाश को सतरंगी आभा से युक्त कर देती है मानो आशाओं के जहाज सातवें आकाश को छूने चले हों। हाथ में थमी यह डोर अपनी जड़ों से जुड़े रहने का प्रतीक है तो उड़ती पतंगें आशा व उन्मुक्तता का प्रतीक है। पौष बड़ों का आयोजन हो या सरसों के खेतों में मेड़ो पर नाचना गाना यह त्योहार हर और अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराता है। मौसम में बढ़ी खुनकी को कम करने के लिए ही गर्म पदार्थों का सेवन शरीर को रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है वहीं ये सांझी परम्पराएँ रिश्तों को ऊष्मा देने में अपनी महती भूमिका अदा करती हैं। पितामह भीष्म के देहत्याग का दिन, देवताओं के जागने का यह पर्व और सूर्य के उत्तरायण होने का यह पर्व अनेक संदर्भ अपने गर्भ में समेटे हुए है पर सबसे अधिक सहज कारण दिखाई देता है तो वह है इसकी चैतन्यता । सूर्य अपनी रश्मियों को सुनहले धान की भाँति पृथ्वी पर बिखेर कर उसे आरोग्य बनाता है और नेह रिश्तों को सींचता है। यही वास्तविक मायने हैं त्योहारों के जहाँ परम्पराएँ बेड़ियाँ बनकर नहीं वरन् स्नेहिल सौगातों के रूप में महकती हैं। अनेकानेक पौराणिक संदर्भ और पुष्कर सरोवर के घाटों पर उच्चरित मंत्रोच्चार हर मन को सात्विक भावों से भर देते हैं। उन्मुक्त गगन और पतंगें यहाँ वसुधैव कुटुम्बकम् का संदेश देती है तो गतिशीलता का संदेश लिए चेतना का चतुर चितेरा सूर्य पुष्कर के घाटों और अरावली पर्वतमाला से घिरे अजयमेरू को कुछ और पीतवर्णी कर देता है । रंग-बिरंगे त्योहार भारतीय संस्कृति की पहचान है और तिल और गुड़दानी का यह त्योहार हमारी सांस्कृतिक धरोहर की मिठास को अक्षुण्ण रखता है।
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