Saturday, December 10, 2016

क्रमिक हत्या

बात यहीं कहीं की है

एक वर्ग वाचाल था
और दूसरा मौन

एक चुप आँखों से
बहुत बोलता था
दूसरा बोलती आँखों से
सब सहता था

एक की पीठ पर
कुछ चुप्पे कायर शब्द आवाज़ पाते थे
जो  चेहरे से घबराते थे
वह उस चुभन को सहेज कर
भीतर की
लौ जलाता, मुस्कुराता, डग भरता

एक वर्ग यूँ कर रहा था
अपनी चौपाल में
किसी अस्तित्व की क्रमिक हत्या

और दूसरा

अपने वज़ूद को
तमाम चोटों के बावज़ूद
निखार रहा था

-विमलेश शर्मा

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