बसंत
की धमक है औऱ चहुँओर प्रकृति की ही तरह सिलसिला बदलावों का है। परिवर्तन की इसी
बयार में मोबाइल सिम वैरिफिकेशन मामले में
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को चेताया है कि सभी मोबाइल कनेक्शन्स का सत्यापन बेहद
ज़रूरी है। आकड़ों की माने तो वर्तमान में
देश में 105 करोड़ मोबाइल यूजर्स हैं और
इनमें से 90
फीसदी से ज़्यादा प्री पेड हैं लेकिन अब ऐसी
कार्ययोजना तैयार की रही है जिससे इन सभी मोबाइल सिम को नए सिरे से आधार से जोड़ा
जा सके। एक वर्ष में सरकार द्वारा इसे पूर्णता की ओर पहुँचाने की राह हालांकि कुछ कठिन जान पड़ती है, पर
फर्जी मोबाइल कनेक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने अब सख्त रूख अख्तियार किया है।
गौरतलब है कि पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि मोबाइल सिम कार्ड रखने वालों की पहचान सत्यापित करने के लिए क्या-क्या तरीके हैं, इसके बारे में दो सप्ताह में केंद्र सरकार से जानकारी भी माँगी गयी थी। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस जे एस खेहर ने कहा था कि मोबाइल सिम कार्ड रखने वालों की पहचान निर्धारित न हो तो , यह नोटबंदी के बाद यकायक बढ़े नेट बैंकिग संबधित मामलों में भी धोखाधड़ी से रुपये निकालने के काम में इस्तेमाल हो सकता है। इस संदर्भ में जनहित में सरकार को जल्द ही पहचान सत्यापित करने की प्रक्रिया करनी चाहिए। इसी के जवाब में केंद्र की ओर से कहा गया कि इस मामले में उसे हलफनामा दाखिल करने के लिए वक्त चाहिए। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने दो हफ्ते का वक्त दिया, और अब इसकी परिणति इस निर्णय से हुई है।
गौरतलब है कि पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि मोबाइल सिम कार्ड रखने वालों की पहचान सत्यापित करने के लिए क्या-क्या तरीके हैं, इसके बारे में दो सप्ताह में केंद्र सरकार से जानकारी भी माँगी गयी थी। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस जे एस खेहर ने कहा था कि मोबाइल सिम कार्ड रखने वालों की पहचान निर्धारित न हो तो , यह नोटबंदी के बाद यकायक बढ़े नेट बैंकिग संबधित मामलों में भी धोखाधड़ी से रुपये निकालने के काम में इस्तेमाल हो सकता है। इस संदर्भ में जनहित में सरकार को जल्द ही पहचान सत्यापित करने की प्रक्रिया करनी चाहिए। इसी के जवाब में केंद्र की ओर से कहा गया कि इस मामले में उसे हलफनामा दाखिल करने के लिए वक्त चाहिए। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने दो हफ्ते का वक्त दिया, और अब इसकी परिणति इस निर्णय से हुई है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट NGO
लोकनीति की जनहित
याचिका पर सुनवाई कर रहा है जिसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार और ट्राई को ये
निर्देश दिए जाए कि मोबाइल सिम धारकों की पहचान, पता और सभी सूचनाएँ
उपलब्ध हों। कोई भी मोबाइल सिम
बिना वैरिफिकेशन के न दी जाए। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर इस मामले
में जवाब मांगा था। हालांकि न्यायालाय द्वारा दिए जा रहे ये दिशा निर्देश पूर्णतः
सटीक है परन्तु उसके सफल क्रियान्वन के लिए आधार कार्ड निर्मिति की प्रक्रिया को
आसान करना होगा।
सभी सूचनाएँ एकत्र होने से देश की सुरक्षा संबंधी
एक बड़ी समस्या भी हल हो जाएगी परन्तु इसके लिए इस राह की पेचीदगियों को सुलझाना
होगा। यह उल्लेखनीय है कि केंद्रीय सूचना एवं
प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने पूर्व में बताया हे कि देश में 111 करोड़ लोगों का आधार कार्ड बन गया है और इसके कारण
दो वर्षों के अंदर केंद्र व राज्य सरकारों के 36,144 करोड़ रुपये की बचत हुई है।
आधार कार्ड के आवेदनों को निबटाने का काम भी युद्ध स्तर पर ज़ारी है। उनके अनुसार
आधार के लिए 47,192 पंजीकरण
केंद्रों के लिए 135 रजिस्ट्रार
व 612 पंजीकरण एजेंसियां काम
कर रही हैं और प्रतिदिन 7-8 लाख
आवेदनों का निपटारा कर रही हैं। उन्होंने कहा 31
मई, 2014 को 63.22 करोड़ आधार कार्ड बन
चुके थे और उस वक्त प्रतिदिन लगभग 3-4
लाख
आवेदनों का निपटारा हो रहा था, जबकि
अक्टूबर 2016 में यह 5-6 लाख प्रतिदिन हो गया। हालांकि, नोटबंदी के बाद से प्रतिदिन 7-8 लाख आवेदनों का निपटारा हो रहा
है। यह आँकड़े सुखद है परन्तु जो एक वर्ष की अवधि सरकार ने तै की है उसका लक्ष्य प्राप्त करने के लिए इस
प्रक्रिया को कुछ आसान कर जनसुलभ करना होगा।
अगर दूरसंचार नियामक ट्राई के
इस मुद्दे पर आए सुझावों को मान लिया जाए तो किसी शहर में बाहर से आने वाले लोगों
को नया कनेक्शन लेने के लिए अपना आधार नंबर देना होगा।ट्राई किसी सेवा क्षेत्र
में कनेक्शन हासिल करने के लिए बाहरी ग्राहक को आधार आधारित ईकेवाईसी के इस्तेमाल
की अनुमति का सुझाव दे सकता है। इसके साथ ही नियामक यह भी सुझाव दे सकता है कि देश
में मौजूदा मोबाइल ग्राहकों को आधार आधारित केवाईसी सत्यापन को प्रोत्साहित किया
जाए । इस निर्णय के तहत देशभर के करीब 95 करोड़ प्री-पेड मोबाइल प्रयोगकर्ताओं को
आधार के ज़रिए अपनी पहचान सिद्ध करनी होगी। यह कवायद दरअसल उन 5 करोड़ फर्जी आई डी के लिए हैं जिनकी पहचान संदिग्ध
है। इस पहचान के लिए आधार कार्ड ही प्राथमिकता रहेगा। परन्तु यह सभी बातें उस कस्बाई औऱ ग्रामीण मन
के लिए कठिन है, जिनका सरोकार तकनीक से नहीं है।
सरकार का मानना है कि मौजूदा ग्राहकों के आधार आधारित ईकेवाईसी से ग्राहकों का उचित सत्यापन सुनिश्चित होगा और सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं को दूर करने में मदद मिलगी। उन्होंने कहा कि ईकेवाईसी के जरिए सत्यापन को अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता लेकिन मौजूदा ग्राहकों को प्रोत्साहित करने के लिए कोई उचित कार्यक्रम बनाकर इसे लागू किया जा सकता है। आँकड़े यह भी बताते हैं कि देश में 31% लोगों के पास अभी आधार कार्ड उपलब्ध नहीं है। साथ ही आधार कार्ड बनवाने की प्रक्रिया भी इतनी आसान नहीं है। बने हुए आधार कार्डों को व्यक्तिगत रूप से मिलने में भी काफी इंतज़ार करना होता है । बने हुए आधार कार्ड में शेष रह गयी त्रुटियों के निस्तारण में भी लम्बा वक्त लग जाता है। साथ ही अनेक प्रकरणों में यह भी देखा गया है कि आधार कार्ड के नाम पर लोगों को गुमराह कर मासूमों से अधिक धन भी ऐंठा जाता है। इन तमाम विसंगतियों से निबटने के लिए सरकार को इस प्रक्रिया को सुलभ बनाना होगा और जनता को विभिन्न स्तरों पर ज़ागरूक करना होगा।
सरकार का मानना है कि मौजूदा ग्राहकों के आधार आधारित ईकेवाईसी से ग्राहकों का उचित सत्यापन सुनिश्चित होगा और सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं को दूर करने में मदद मिलगी। उन्होंने कहा कि ईकेवाईसी के जरिए सत्यापन को अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता लेकिन मौजूदा ग्राहकों को प्रोत्साहित करने के लिए कोई उचित कार्यक्रम बनाकर इसे लागू किया जा सकता है। आँकड़े यह भी बताते हैं कि देश में 31% लोगों के पास अभी आधार कार्ड उपलब्ध नहीं है। साथ ही आधार कार्ड बनवाने की प्रक्रिया भी इतनी आसान नहीं है। बने हुए आधार कार्डों को व्यक्तिगत रूप से मिलने में भी काफी इंतज़ार करना होता है । बने हुए आधार कार्ड में शेष रह गयी त्रुटियों के निस्तारण में भी लम्बा वक्त लग जाता है। साथ ही अनेक प्रकरणों में यह भी देखा गया है कि आधार कार्ड के नाम पर लोगों को गुमराह कर मासूमों से अधिक धन भी ऐंठा जाता है। इन तमाम विसंगतियों से निबटने के लिए सरकार को इस प्रक्रिया को सुलभ बनाना होगा और जनता को विभिन्न स्तरों पर ज़ागरूक करना होगा।
तकनीक के हमकदम
होने की अपनी कीमत होती है, जिसे चुकाते-चुकाते वयक्ति अनेक तनावों से गुज़रता है।
यही आशा कि देशहित में उठाए
जा रहे इन सभी कदमों से आम आदमी को परेशानियाँ ना झेलना पड़े नहीं तो हर मन यही
कहेगा –
‘पर्दा-
ए- लुत्फ में ये ज़ुल्म-ओ-सितम क्या कहिए,
हाए
ज़ालिम तिरा अंदाज-ए-करम क्या कहिए ।’ (फ़िराक़)
http://www.epaper.rajexpress.in/Details.aspx?id=254036&boxid=55932241
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