उजली हंसी तब फ़ीकी हो जाती है जब हम अपने विश्वास को चूर-चूर होता देखते हैं। जिधर देखिए उधर ही धोखे के व्यापार पर दुनिया का कारवां बढ़ा जा रहा है औऱ यही कारण है कि डॉक्टर भी मरीज को पाल ले इक रोग नादां की नसीहत देते हुए अपनी महत्वाकांक्षाओँ को पर देने लगे हैं। केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका संजय गांधी ने एक बार फिर मानवता के ज़मीर पर कुछ सवाल खड़े किए हैं। महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने इस मुद्दे पर सराहनीय हस्तक्षेप करते हुए अस्पतालों को सी-सेक्शन सर्जरी के माध्यम से पैदा होने वाले बच्चों की जानकारी को सार्वजनिक करने का आदेश देने के लिए स्वास्थ्य मंत्री जे.पी नड्डा से अनुरोध किया है। उन्होंने इस सर्जिकल स्ट्राइक के तहत दोषी चिकित्सकों के नाम उजागर करने की बात भी रखी है। मेनका गाँधी ने बच्चों को जन्म देने के लिए गर्भवती महिलाओं को सी-सेक्शन सर्जरी के लिए मजबूर करने की अस्पतालों की बढ़ती प्रवृत्ति के बारे में भी गहरी चिंता व्यक्त की है। प्राकृतिक तरीके से बच्चे पैदा होने देने की बजाय सर्जरी से बच्चे पैदा करने की तरफ महिलाओं को धकेल कर लाभ कमाने वाले अस्पतालों और डॉक्टरों के खिलाफ 'चेंज डॉट ओआरजी' की सुपर्वो घोष की एक अर्जी के जवाब में मेनका ने यह बात कही । इस अर्जी पर अब तक 1.3 लाख लोग दस्तखत कर चुके हैं।
डॉक्टरी पेशा एक लम्बे वक्त औऱ मंहगी सुविधाओँ की मांग की दरकार रखता है। इसीलिए डॉक्टर अधिक से अधिक पैसा कमाना ही जीवन का ध्येय मानते हैं। सिजेरियन डिलीवरी के बढ़ते आंकड़े स्वास्थ्य सेवाओँ के कारोबारी रूख को इंगित करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की वर्ष 2014 की सिजेरियन ऑपरेशन संबंधी रिपोर्ट के आंकड़ें चौंकातें हैं। इसमें बताया गया है कि भारत में प्रसव के संबंध में 5 से 50 % सिजेरियन दर बढ़ गयी है। भारत ही नहीं समूचा विश्व इस समस्या से जूझ रहा है। विश्व में 5 में से 1 केस सिजेरियन होता है। अमेरिका में यह दर 29.1% तथा ब्राजील में यह 20% है। चिंताजनक बात यह है भारत में लगभग 70% डिलीवरी सिजेरियन आपरेशन के माध्यम से हो रही है और महानगरों में यह दर औऱ अधिक है ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी सिफारिशों में मातृ औऱ शिशु सुरक्षा पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि सी-सेक्शन सर्जरी सामान्य रूप से कुल डिलिवरी की 10 से 15 प्रतिशत ही होनी चाहिए । परन्तु दुखद है कि हालिया राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण परिवार रिपोर्ट में भी यह आंकड़ा बहुत अधिक पाया गया है। निजी अस्पतालों और नर्सिग होम में ऑपरेशन के आंकड़ों की यह स्थिति चिंताजनक है। नेशनल फेमिली हेल्थ सर्विस के मुताबिक तेलंगाना में, निजी अस्पतालों में सी-सेक्शन डिलिवरी करवाने वाली महिलाओं की संख्या कुल डिलिवरी की 58 प्रतिशत है वहीं दूसरे स्थान पर तमिलनाडू था जहाँ 34.1 प्रतिशत बच्चों का जन्म सिजेरियन के माध्यम से हुआ। हालांकि कई बार दर्द रहित प्रसव के लिए भी यह कदम उठाया जाता रहा है पर अधिकतर मामलों में पैसा लेने की नीयत से किए गए ये ऑपरेशन स्वास्थ्य सेवाओँ पर सवालिया निशान छोड़ते हैं। चिकित्सक इसका कारण खतरा नहीं उठाने की नीति बताते हैं । आणविक परिवारों का चलन भी इसका एक कारण है परन्तु सच तो यही है कि निजी अस्पतालो में ऑपरेशन के बहाने मोटी रकम ऐंठी जाती है। नार्मल से तीन गुना अधिक पैसे सिजेरियन से मिलते हैं। मरीज अधिक दिन तक अस्पताल में रहता है औऱ यूँ उसका बिल भी बढ़ता रहता है जो इसके व्यवसायियों की जेब भरता रहता है।
प्रसव से पूर्व ही डॉक्टर व्यवसायिक रणनीति बनाते हुए , दपंति को भयभीत औऱ गुमराह कर ऑपरेशन के लिए दबाव बनाते हैं। इसके लिए वे सिजेरियन डिलेवरी के वैज्ञानिक औऱ आधुनिक होने की बात कहते हैं। प्रसव के भय औऱ तथाकथित अनेक खतरों से बचने के लिए दंपति इस विकल्प का चयन कर लेते हैं परन्तु प्रसव की यह तकनीक माँ औऱ बच्चे दोनों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर डालती है। एक शोध के अनुसार सामान्य प्रसव के दौरान होने वाला स्त्राव, हितकर जीवाणुओं से युक्त होता है। यह स्राव शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाला तथा दमा, एलर्जी तथा श्वसन संबंधी अनेक खतरों को कम कर देने वाला भी होता है। सिजेरियन प्रसव की अपनी हानियाँ है जिसमें माँ और शिशु के लिए अनेक खतरें इस शोध में बताए गए हैं। मेनका ने नड्डा को लिखी इस चिट्ठी में कहा है कि इस समस्या से निपटने के लिए हमें शायद कई तरीकों की जरूरत होगी । एक तो यह हो सकता है कि नर्सिंग होम और अस्पताल से कहा जाए कि वे हर महीने किए गए सी-सेक्शन डिलीवरी और सामान्य डिलीवरी की संख्या सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित करें। साथ ही महिलाओँ और आम जन में सुरक्षित प्रसव के संदर्भ में जागरूकता भी बढ़ानी होगी। मेनका गांधी ने इस मामले मे यह भी सुझाव दिया है कि स्वास्थ्य मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सहयोग से चिकित्सीय समुदाय के साथ भावी माताओं के साथ-साथ मिलकर एक अभियान चला सकता है।
स्वास्थ्य मंत्री को भेजे अपने संदेश में मेनका संजय गांधी ने इस ओर इशारा किया है कि सी-सेक्शन सर्जरी से न केवल माता के स्वास्थ्य पर बल्कि प्रसव के बाद उसके लगातार काम करने की क्षमता पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है। अधिकांश मामलों में सी-सेक्शन सर्जरी ने महिला के प्रजनन स्वास्थ्य को भी प्रभावित किया है। स्वास्थ्य सेवाओँ के इस कारोबारी रवैये ने महिला एवं शिशु विकास को खतरें में डाल दिया है। नन्हीं कोंपले इसी कारण ब्रोंकाइटिस के खतरे से जूझ रही है। इसका कारण आकस्मिक चिकित्सा जरूरत नहीं बल्कि पैसा कमाने की वह लालसा ही है जिसके चलते डॉक्टर स्वास्थ्य सेवाओँ संबंधी मूल्यों को ताक में रख देते हैं। हर पेशे के अपने मूल्य होते हैं । स्वास्थ्य सेवाएँ, समर्पण औऱ विश्वास की अधिक दरकार रखती हैं क्योंकि मरीज के लिए डॉक्टर दैवीय भूमिका में होता है। मातृ औऱ शिशु हितों की रक्षा बेहतर भविष्य के निर्माण में आज अधिक ज़रूरी है। अतः आवश्यकता है ऐसे धनपिपासुओँ को सबक सिखाने की जो मानवता के दामन को शर्मसार कर रहे हैं। सतर्कता और जागरूकता के साथ हर व्यक्ति को ऐसी मानसिकता वालों से अब सवाल करना ही होगा कि-
‘हम हैं मुशताक औऱ वो बेज़ार,या इलाही ये माज़रा क्या है’(गालिब)
-विमलेश शर्मा
1 comment:
good read it also
Post a Comment