Saturday, May 26, 2018

प्रेम में उदारता के समीकरण

बस चल रही थी और साथ ही कुछ सुबकियाँ।
पहले नज़रअंदाज़ किया पर उपेक्षा मारक होती है यह बात भी जानती हूँ। मेरे सोचने के बीच वह लगातार  रोती जा रही थी । अब तक इतने आँसू बह चुके थे कि उससे तीन वक़्त के भोजन के लिए नमक सहेज लिया जा सकता था।यह तीन वक़्त के नमक की अपनी दृष्टिकूट गणित से ध्यान हटा उसे पूछा तो किसी निठुर चाँद की बात सामने आई।  उसके आँसू पोछते  हुए मैंने कहा देखो यह जो चाँद है ना इसकी प्रकृति में ही दोष है।

कैसे ...??वह रूलाई के साथ बोली तो मैंने कहा सुनो दो चकोर की एक कहानी...

एक
चकोर ने एक दिन चाँद से कहा
तुम अब मुझे अजनबी से लगते हो?

मैं इन दिनों  देखता हूँ कि एक और चकोर भी तुम्हें मुझ जैसे ही देखता है और तुम भी ठीक वैसे। मैंने तुम दोनों की बातें सुनी और स्वयं को कहीं दूर ठिठके पाया। तुम्हारे नेह को भी टटोला वो वहाँ था बस नहीं था तो मेरा कुछ । वो रिक्ति जो उन क्षणों में , मेरी तुम्हारे मन में अनुपस्थिति  की बनी वो अब मेरे साथ है। उसे साथ ले कर मैंने एक रेखा खींच दी है और जो तुम्हारा था वहीं रख दिया है कुछ आशीषों के साथ ताकि बना रहे तुम्हारा नेह।

यह रिक्ति कचोटती है। यह रिक्ति मारक है। यह बताती है कि जगत् का दृष्टिकोण उपयोगितावादी होता है।प्रेम में उदारता के समीकरण बहुत कष्टकारी होते हैं प्रिय!

मुझे मालूम है तुम्हे किसी छुअन में मेरा एहसास नहीं हुआ होगा, ना ही मेरे दर्द की कोई टीस सुनाई दी होगी...उस अंक में तुम्हें मेरे उस हरे एहसास का आभास नहीं हुआ होगा। नहीं ही हुआ होगा...

वह सोचता रहा ...कि चकोर ना हो तो चाँद की क्या बिसात ! पर चकोर और चाँद का यह अंतर ही प्रकृति और पुरुष का अंतर है। उफ़्फ़ कितने छलावे हैं यहाँ। वो चकोर जो रहा चाँद के साथ भाग्यवान् था और जो छूट गया वो ...उसकी कहानी तो हम सभी जानते ही हैं...शब्द नहीं व्यक्त कर सकते उस पीडा को, वो अव्यक्त है।

लड़की का सर मेरे काँधे पर था...जानती हूँ प्रेम के अपने लक्षण और उदाहरण होतें हैं पर ...!
इस टूटन के दिलासे के लिए शब्द उसी लड़की के थे जो चकोर को उधार दे दिए थे पर उधार की छाँव तो सदा कड़वी ही होती है..यह कौन समझाए और किसे??

#प्रेम_गली_अति_साँकरी
-विमलेश शर्मा


1 comment:

Manish said...

ऐसा लगता है कहानियाँ हक़ीकत के रूप में जन्म लेती हैं और हक़ीकत एक कहानी बनकर कहीं दर्ज़ हो जाती है. इस धरती के किसी कोने में बैठकर जब आपने इस कहानी को रचा-बुना और यहाँ प्रकाशित किया तब धरती के इसी कोने में यह कहानी हक़ीकत के रूप में उभर आयी थी. इस पुनर्जन्म में लिंग बदल गया था, चाँद का भी और चकोर का भी.
इधर बस तो नहीं, लेकिन हवा जरूर चल रही थी. बाक़ी आपका किरदार हम निभा रहे थे.
आश्चर्य इस बात का है आपने शाम 8 बजे कहानी को आज़ाद किया और ठीक 2 घंटे बाद वह कहानी मुम्बई पहुँच आयी, हक़ीकत बनकर.

अत्यधिक आश्चर्य की बात इस पंक्ति में है -- उसे साथ लेकर मैंने एक रेखा खींच दी है और जो तुम्हारा था वहीं रख दिया है, कुछ आशीषों के साथ ताकि बना रहे तुम्हारा नेह.